
प्रस्तावना:
“गुरु भक्ति” केवल एक भावना नहीं, बल्कि आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की वह अमूल्य डोर है, जो जीवन में असंभव को संभव बना देती है।
Self Awakening Mission के अंतर्गत Sanjiv Malik जी से प्रेरित, यह कथा भक्त की सच्ची और चमत्कारी लीला है, जो गुरु भक्ति की महिमा को प्रकट करती हैं।
🌺 श्री लीला श्री पंचम पातशाही जी श्री गुरु महाराज जी की 🌺
एक बार एक भक्तानी को ब्रेन ट्यूमर (दिमाग का कैंसर) हो गया था। अंतिम अवस्था में डॉक्टरों ने जवाब दे दिया और मात्र एक माह की आयु बताई।
भक्तानी जी ने बीमारी की चिंता नहीं की और सोचा – “अपने प्यारे श्री महाप्रभु जी के अंतिम दर्शन कर लूं।” वह श्री चरणों में पहुंचीं और दंडवत प्रणाम कर रो पड़ीं।
श्री महाप्रभु जी ने करुणा पूर्वक पूछा – “इस्नु कहो, एक महीने इत्थे सेवा करेगी?” महात्मा जी ने वही भक्तानी से कहा। वह तो पहले से समर्पित थी, उसने कहा – “स्वामी जी! जो सेवा दोगे, तन-प्राण से करूंगी।”
गुरु महाराज जी ने सेवा दी – “हर रोज़ सवेरे-शाम पैदल मंदिर आकर श्री आरती में सम्मिलित हो।” हालत खराब होते हुए भी वह रोज आरती में आईं।
28वें दिन हालत अधिक बिगड़ी, लेकिन उसने हार नहीं मानी। 31वें दिन जब सुखपुर अस्पताल में जांच हुई, तो डॉक्टर हैरान रह गए – कैंसर पूरी तरह समाप्त हो चुका था!
यह श्री महाप्रभु जी की कृपा और गुरु भक्ति का जीवंत उदाहरण है।
निष्कर्ष:
जो भी सच्चे हृदय से सतगुरु की सेवा करता है, और हर परिस्थिति में कहता है – “हे प्रभु! जो तेरी इच्छा हो, वही मुझे भाता है,” उन्हें संसार की कोई भी विपदा नहीं छू सकती।
Self Awakening Mission और Sanjiv Malik जी का यह संदेश है –
गुरु भक्ति में ही आत्मा की सच्ची मुक्ति है।
जय श्री गुरु महाराज जी की!