
देवता और भगवान में अंतर यह है कि देवता भगवान के अधीन होते हैं और वे ब्रह्मांड की व्यवस्था को बनाए रखने में मदद करते हैं, जबकि भगवान सर्वशक्तिमान हैं और ब्रह्मांड के निर्माता और नियंता हैं।
देवी-देवता भगवान के अंतर्गत आते हैं। अब आप सोचेंगे कि देवी-देवता कहें या भगवान बात तो एक ही है। तो बता दें कि देवी-देवता और भगवान में बहुत अंतर होता है।
हम सभी किसी न किसी देवी-देवता की पूजा करते हैं। हर देवी-देवता के आधीन कोई न कोई शक्ति होती है, लेकिन क्या आपको पता है की देवी-देवता किसके आधीन होते हैं?देवी-देवता भगवान के अंतर्गत आते हैं। अब आप सोचेंगे कि देवी-देवता कहें या भगवान बात तो एक ही है। तो बता दें कि देवी-देवता और भगवान में बहुत अंतर होता है।
भगवान शब्द में पंच तत्व वायु, पृथ्वी, आकाश, जल और अग्नि आदि समाहित हैं। यानी की स्वयं भगवान में यह पांच तत्व मौजूद हैं जिनसे सृष्टि और सृष्टि के हर एक व्यक्ति का निर्माण होता है। इसी कारण से हर योनी के जीव को भगवान का अंश माना जाता है।
भगवान प्रत्येक स्थान में वास करते हैं। वहीं, उनके निजी स्थान की बात करें तो सृष्टि के मूलभूत भागों में भगवान ने अपना धाम बनाया हुआ। उदाहरण के तौर पर, भगवान शिव एवं माता पार्वती ने पृथ्वी यानी कि भूमि ‘कैलाश’ को अपने धाम के रूप में स्थापित किया।
वहीं, भगवान विष्णु जल में यानी कि क्षीर सागर में माता लक्ष्मी के साथ निवास करते हैं। श्री कृष्ण और राधा रानी ने ब्रह्मांड यानी कि आकाश में अपने धाम ‘गोलोक’ का निर्माण किया है। इसी प्रकार हनुमान जी ने वायु और अग्नि में अपनी उपस्थिति स्थापित की है।
भगवान यानी की वो परब्रह्म जिनके आधीन सभी देवी-देवता आते हैं। भगवान के अंतर्गत ही वह शक्ति होती है कि वे अपने विभिन्न अवतारों में पृथ्वी पर जन्म लेते हैं। भगवान के आधीन पंच महाभूत, देवी-देवता, यक्ष-यक्षिणी, गंधर्व आदि सभी आते हैं।
भगवान में श्री राम, श्री कृष्ण, महादेव, विष्णु जी, हनुमान जी, गणेश जी एवं इनके अवतार आते हैं। भगवान मृत्यु और जीवन से परे होते हैं। किसी भी प्रकार के विकारों में भी भगवान नहीं पड़ते हैं। माया भी भगवान के आधीन मानी जाती है।
वहीं, देवी-देवता भगवान का अंश होते हैं। यह ग्रह रूप में भी सौर मंडल में विराजमान रहते हैं। देवी-देवताओं का मूल निवास स्वर्ग माना गया है और उनका अर्ध वास दिशाओं मिजं होता है। जैसे कि सूर्य देव की पूर्व दिशा, यमराज की दक्षिण दिशा है।
वहीं, शनिदेव की पश्चिम दिशा है और कुबेर देव की उत्तर दिशा है। देवी-देवता पंच तत्वों से नहीं बने होते हैं बल्कि उनका जन्म भगवान के शरीर के किसी न किसी अंग से हुआ है। शास्त्रों में देवी-देवता को एक पद माना गया है।
उदाहरण के तौर पर इंद्र किसी देव का नाम नहीं है बल्कि यह एक पद है जिस पर बैठने वाले देव को इन्द्रदेव कहा जाता है। इंद्र एक मात्र ऐसा पद है जिस पर नियुक्त देवता हर चार युग के अंत के बाद नए युग के आरंभ से पहले बदले जाते हैं।
देवी-देवता अलग-अलग पंच तत्वों का प्रतिनिधित्व करते हैं लेकिन किसी भी देवता में सभी पंच तत्व एक साथ समाहित नहीं है, इसी कारण से देवी-देवता विकारों के आधीन भी हो जाते हैं और उनमें अहंकार का बीजारोपण होता है।
भगवान को किसी बी प्रकार के बल की आवश्यकता नहीं है, लेकिन देवी-देवताओं को बल मनुष्य द्वारा किये गए हवन-अनुष्ठान एवं पूजा-पाठ आदि से ही मिलता है। कई पौराणिक कथाओं में यह वर्णित है की असुर देवताओं को कमजोर करने के लिए पूजा-पाठ पर रोक लगाते थे।
भगवान अर्थात परमात्मा एक ही है। परमात्मा सर्वोच्च सत्ता है, परमात्मा के संकल्प मात्र से ही अनंत कोटि ब्रह्मांड का निर्माण हुआ है। स्थूल – सूक्ष्म,जड़ – चेतन,साकार – निराकार में परमात्मा का ही अस्तित्व है।
परमात्मा ने सृष्टि चलायमान रखने के लिए सभी देवी देवता का निर्माण किया और उन्हें कार्यभार सौंपा।
जैसे कि…
ब्रह्मा विष्णु और शिवजी को,पालन,सृजन और संहार ये कार्य दिए। सूर्य को सृष्टि में प्रकाश फैलाने का कार्य दिया ताकि सृष्टि हरीभरी रहे,जीवों का पोषण हो सके। ऐसे ही अग्नि देव,वायु देव का निर्माण किया।
यही परमात्मा जब हम जैसे अबोध जीवों का कल्याण करने के लिए मनुष्य रूप में अवतार धारण करते है तब हम उन्हें सदगुरु कहते है।
और हमारे सदगुरु श्री परमहंस दीनदयाल साक्षात परमात्मा है।उन्हीं के अधीन समस्त अनंत कोटि ब्रह्मांड समाया है। उनके परम पावन चरणकमलों में ही सभी देवी देवता का वास है।
श्री परमहंस स्वामी महाराज ही भगवान है, परमेश्वर है। वहीं ईश्वर के ईश्वर है।अनंत कोटि पृथ्वी के मालिक हमारे परमहंस महाराज ही हैं। अनंत कोटि ब्रह्मा,विष्णु,महेश के निर्माता हमारे सदगुरु ही है। अनंत कोटि सरस्वती,काली,लक्ष्मी के वही नाथ है।हमारे परमहंस महाराज जगतपिता है।