
इसमें कोई शक नहीं कि पिता और पुत्र के बीच में बेहद ही खास रिश्ता होता है। कहते हैं कि पिता का सबसे करीबी दोस्त उसका बेटा ही होता है। यह रिश्ता विश्वास, स्नेह और अटूट बंधन से बंधा होता है। एक दिन, एक बेटा जिसका नाम गोविंद था, वह अपने माता-पिता से बहुत प्यार करता था। वह हमेशा उनकी ज़रूरतों का ध्यान रखता और उन्हें खुश रखने की कोशिश करता था।
एक दिन गोविंद अपने पिता जी को एक अच्छे रेस्टोरेंट में खाना खाने के लिए लेकर गया। वह जानता था कि उनके पिता को अच्छा खाना बहुत पसंद है और वह उन्हें एक खुशनुमा माहौल देना चाहता था। खाना खाते समय, बुढ़ापे के कारण उनके पिता जी के हाथों से खाना गिर गया और यह बार-बार हुआ। रेस्टोरेंट में बैठे दूसरे लोग बड़ी घृणा के साथ उनकी तरफ देख रहे थे। कुछ फुसफुसा रहे थे और अपनी नाक सिकोड़ रहे थे। लेकिन गोविंद शांत स्वभाव का था और वह बिल्कुल शांत रहा। उसे अपने पिता की स्थिति समझ आ रही थी और उसे दूसरों की परवाह नहीं थी।
खाने के बाद गोविंद ने बिना किसी शर्म से अपने पिता जी को वाशरूम में ले गया। उसने उनके कपड़े साफ किए, उनके हाथ-मुँह धोए, उनके बाल ठीक किए, और फिर अपने पिता जी को बाहर लेकर आया। सभी लोग खामोशी से उन्हें देख रहे थे, उनकी नज़रों में जिज्ञासा और थोड़ी हैरानी थी। कोई कुछ कहता उनके बाप के बारे में, तो कोई कुछ कहता कि क्या ज़रूरत थी इसको अपने पिता को साथ में लाने की, जब खाना-पीना ही नहीं आता इसके बाप को। गोविंद ने उन लोगों की बातों को अनसुना कर दिया।
गोविंद ने बिल का भुगतान किया और आदर पूर्वक पिता जी का हाथ पकड़ कर जाने लगा, तभी डिनर कर रहे एक अन्य बुजुर्ग ने उसे आवाज दी, और पूछा- “बेटा गोविंद, क्या तुम्हें नहीं लगता कि यहाँ अपने पीछे तुम कुछ छोड़ कर जा रहे हो?” उनकी आवाज़ में स्नेह और जिज्ञासा थी। गोविंद ने विनम्रता से जवाब दिया, “नहीं सर, मैं कुछ भी छोड़ कर नहीं जा रहा।” बुजुर्ग ने मुस्कुराते हुए कहा- “बेटे गोविंद, तुम यहाँ हर किसी पुत्र के लिए शिक्षा, सबक और हर किसी पिता के लिए एक उम्मीद छोड़ कर जा रहे हो।” उनकी आँखों में प्रशंसा का भाव था।
आमतौर पर हम लोग अपने बुजुर्ग माता-पिता को अपने साथ बाहर ले जाना पसंद नहीं करते और कहते हैं कि आप बाहर जाकर क्या करोगे। आप से चला तो जाता नहीं और न ही कुछ खाया-पिया जाता है, आप घर में ही रहो। लेकिन क्या आप भूल गए कि जब आप छोटे थे, ठीक तरह से खाया-पिया भी नहीं जाता था? तब हम आपको अपनी गोद में बिठाकर बाहर घुमाने लेकर जाते थे। अपने हाथों से खाना खिलाते थे। खाना गिर जाने पर या फिर कोई गलती हो जाने पर डांटते नहीं थे बल्कि प्यार से समझाते थे। उनकी हर छोटी ज़रूरत का ध्यान रखते थे।
फिर वही माँ-बाप बुढ़ापे में बोझ क्यों लगने लगते हैं? माँ-बाप भगवान का ही रूप हैं। इनकी सेवा करो, इनकी कदर करो। उनके अनुभव और आशीर्वाद हमारे जीवन के लिए अनमोल हैं।
खुशियों से भरा हो वो संसार, जिसमें ताउम्र हो पापा का प्यार। मेरा बेटा मेरा गरूर है, चाँद भी शर्मा जाए, वो ऐसा कोहिनूर है। बेटे के सिर पर जब पिता का हाथ होता है, उसका हर लम्हा खुशहाल होता है। सबकी आँखों का तारा होता है, बेटा सिर्फ बेटा नहीं, पिता का सहारा होता है। वो हमें पानी देकर खुद पसीने से नहाते हैं, हमारी मुस्कान देख कर अपना दर्द भूल जाते हैं, हमारे सपने हों पूरे इसलिए वो काम पर जाते हैं, वो इंसान नहीं आम जो पिता कहलाते हैं। पिता का प्यार एक सुरक्षा कवच की तरह होता है, जो हमें दुनिया की हर मुश्किल से बचाता है।
अगर आप भी चाहते हैं कि आपके बच्चे संस्कारी हो तो यह वीडियो देखना न भूलें।