
परिचय:
सनातन धर्म, जिसे विश्व का सबसे प्राचीन धर्म कहा जाता है, न केवल एक धार्मिक व्यवस्था है, बल्कि एक जीवनशैली, एक चेतना और एक आध्यात्मिक यात्रा भी है। “सनातन” का अर्थ है — शाश्वत, जो कभी नष्ट नहीं होता। यह धर्म न किसी एक व्यक्ति द्वारा स्थापित किया गया, न किसी एक ग्रंथ पर आधारित है। इसकी जड़ें वैदिक ज्ञान, उपनिषद, पुराण, भगवद गीता और ऋषियों की अनुभवसिद्ध साधना में हैं।
सनातन धर्म का सार:
सनातन धर्म का मूल उद्देश्य आत्मा की मुक्ति, परमात्मा से मिलन और संसार के चक्र से मुक्त होना है। यह धर्म मनुष्य को केवल बाहरी पूजा-पाठ तक सीमित नहीं रखता, बल्कि उसे आत्मचिंतन, स्वधर्म पालन, सेवा, करुणा, और ब्रह्मज्ञान की ओर प्रेरित करता है। इसमें गुरु-शिष्य परंपरा, तप, ध्यान, मंत्र, योग और ज्ञान मार्ग अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान रखते हैं।
‘ॐ श्री परमहंसाय नमः’ मंत्र का रहस्य:
मंत्र की व्याख्या:
ॐ — ब्रह्मांड का मूल ध्वनि, आदिशक्ति, शुद्ध चेतना।
श्री — दिव्यता, ऐश्वर्य और सौभाग्य का प्रतीक।
परमहंसाय — ‘परमहंस’ शब्द का अर्थ है वह संत या योगी जिसने आत्मा और परमात्मा के भेद को मिटा दिया हो, जो जीवन्मुक्त हो चुका हो।
नमः — नम्रता से वंदन, समर्पण की भावना।
अतः यह मंत्र कहता है — “हे परम ज्ञानी, दिव्य परमहंस, आपको मैं श्रद्धा सहित नमन करता हूँ।”
मंत्र का आध्यात्मिक प्रभाव:
‘ॐ श्री परमहंसाय नमः’ मंत्र, साधक को एक उच्चतर चेतना से जोड़ता है। यह उन आत्माओं को समर्पण है जिन्होंने मन, बुद्धि, अहंकार और इंद्रियों की सीमाओं को पार कर परम सत्य को साक्षात किया है। ऐसे परमहंस संत — जैसे श्री रामकृष्ण परमहंस, युगों में विरले ही जन्म लेते हैं और मानवता को ईश्वर से मिलने की राह दिखाते हैं।
इस मंत्र का जाप करने से:
मन शांत होता है।
अहंकार का क्षय होता है।
गुरु तत्त्व से जुड़ाव बढ़ता है।
आत्मा में श्रद्धा, भक्ति और समर्पण की भावना जागृत होती है।
गुरु तत्त्व और परमहंस:
सनातन धर्म में गुरु को भगवान से भी ऊँचा स्थान दिया गया है। ‘गुरु ब्रह्मा, गुरु विष्णु, गुरु देवो महेश्वरः’ — यह श्लोक दर्शाता है कि गुरु ही ब्रह्मांडीय चेतना का प्रतिनिधित्व करता है। जब कोई साधक ‘ॐ श्री परमहंसाय नमः’ मंत्र का जाप करता है, तो वह उस दिव्य गुरु तत्त्व से जुड़ता है जो उसे अज्ञान से ज्ञान की ओर, मृत्यु से अमरता की ओर ले जाता है।
निष्कर्ष:
‘ॐ श्री परमहंसाय नमः’ केवल एक मंत्र नहीं है, यह एक संपूर्ण साधना है। यह श्रद्धा है उस दिव्य सत्ता में जो मानव रूप में हमारे मार्गदर्शक बनकर आती है। सनातन धर्म हमें केवल ईश्वर की उपासना नहीं सिखाता, बल्कि हमें ईश्वर जैसा बनने की क्षमता भी देता है। और यही इस धर्म की सबसे महान विशेषता है — मुक्ति, प्रेम और चैतन्य की ओर बढ़ना।