
मनुष्यता का सार दान देने में निहित है। अक्सर हम दान को केवल धन-संपत्ति के लेन-देन तक सीमित मान लेते हैं, और एक हद तक यह सही भी है। परंतु, दान का अर्थ मात्र पैसे का दान नहीं है। दान का वास्तविक अर्थ है अपनी शक्तियों का उपयोग दूसरों की सहायता करने, उन्हें दुख, दर्द, गिरावट, बीमारी, अज्ञानता, दरिद्रता और संकट से बचाने का प्रयास करना।
अमीरी सिर्फ धनवान होने तक सीमित नहीं है। रुपए-पैसे की अमीरी तो केवल एक प्रकार की संपन्नता है। यदि आपके पास बाहुबल (शारीरिक शक्ति), राज्य बल (प्रशासनिक शक्ति), चरित्र बल (नैतिक शक्ति), समाज बल (सामाजिक प्रभाव), ज्ञान बल (विद्वत्ता), विज्ञान बल (वैज्ञानिक समझ), योग बल (योगिक शक्ति), या ध्यान बल (मानसिक एकाग्रता) जैसी शक्तियाँ हैं, और आप दूसरों की आवश्यकता को देखकर या उन्हें कष्ट में पड़ा देखकर भी उनकी सहायता नहीं करते, तो यह दान नहीं है।
दान का वास्तविक अभिप्राय यह है कि आपके पास जो भी शक्ति है, उसे दूसरों के भले के लिए अर्पित कर दें। वे लोग जो शक्ति होने पर भी दूसरों के लिए उसका प्रयोग नहीं करते—जो ज्ञानी होने पर भी ज्ञान नहीं बांटते, बाहुबल होने पर भी दुर्बलों की रक्षा नहीं करते, राज्य बल होने पर भी न्याय नहीं करते, योग बल होने पर भी दूसरों के कष्ट दूर नहीं करते, और ध्यान बल होने पर भी दूसरों को आध्यात्मिक मार्ग पर जाने की प्रेरणा नहीं देते—वे भले ही देखने में मनुष्य प्रतीत हों, परंतु वास्तव में वे मनुष्य नहीं हैं। वे मानवता के सबसे बड़े गुण, दान को विस्मृत कर चुके हैं।
पूरी प्रकृति हमें निरंतर कुछ न कुछ दे रही है। सूर्य हमें प्रकाश देता है, नदियाँ जल देती हैं, वृक्ष फल और छाया देते हैं। यह प्रकृति का निस्वार्थ दान है। यदि आपसे और कुछ न बन पड़े, तो कम से कम प्यार के दो मीठे बोल ही बोल दें, किसी को मुस्कुराहट ही दे दें, या किसी रोते हुए को हँसा दें। ये छोटे-छोटे कार्य भी दान के ही विभिन्न रूप हैं।
भीतरी बात – गहरी बात
दादू दयाल जी ने कहा है:
“दादू दिया भला, दिया करो दो हाथ, दिया घर में चांदनी और दिया चले साथ।”
यह पंक्ति दान के महत्व को गहराई से दर्शाती है। “दादू दिया भला” का अर्थ है कि दान देना अत्यंत शुभ और कल्याणकारी है। “दिया करो दो हाथ” हमें उदारतापूर्वक, बिना किसी संकोच के दान करने की प्रेरणा देता है। “दिया घर में चांदनी” बताता है कि दान करने से हमारे जीवन में प्रकाश और सुख आता है, जैसे दीपक से घर में रोशनी फैलती है। और “दिया चले साथ” का अर्थ है कि हमारे द्वारा किया गया दान हमारे साथ परलोक तक जाता है, यह हमारे पुण्य कर्मों के रूप में हमारे साथ रहता है।
यह सार बताता है कि सच्चा दान केवल भौतिक वस्तुओं का आदान-प्रदान नहीं है, बल्कि अपनी शक्तियों, ज्ञान और प्रेम को दूसरों के कल्याण के लिए समर्पित करना है। यही सच्ची मानवता है।