
जैसे सेब को यदि काटकर देखें तो उसमें से अकसर तीन-तीन बीज निकलते हैं और एक बीज से एक पेड़, एक पेड़ से अनेक सेब, अनेक सेबों में फिर तीन-तीन बीज। हर बीज से फिर एक-एक पेड़ और यह अनवरत क्रम चलता ही जाता है। ठीक इसी तरह गुरु की कृपा हमें प्राप्त होती रहती है। बस हमें उसकी भक्ति का एक बीज अपने मन में लगा लेने की जरूरत है।
गुरु एक तेज है, जिनके आते ही सारे संशय के अंधकार खत्म हो जाते हैं।
गुरु वो मृदंग है, जिसके बजते ही अनाहद नाद सुनना प्रारंभ हो जाता है।
गुरु वो ज्ञान है, जिसके मिलते ही भय समाप्त हो जाता है।
गुरु वो दीक्षा है, जो सही मायने में मिलती है तो भव सागर पार हो जाते हैं।
गुरु वो नदी है, जो निरन्तर हमारे प्राणों से बहती है।
गुरु वह सत् चित् आनन्द है, जो हमें हमारी पहचान देता है।
गुरु वो बांसुरी है, जिसके बजते ही मन और शरीर आनन्द अनुभव करता है।
गुरु वो अमृत है, जिसे पीकर कोई कभी प्यासा नहीं रहता।
गुरु वो कृपा है, जो सिर्फ कुछ सद् शिष्यों को विशेष रूप में मिलती है और कुछ पाकर भी समझ नहीं पाते हैं।
गुरु वो खजाना है, जो अनमोल है।
गुरु वो प्रसाद है, जिसके भाग्य में हो उसे कभी कुछ भी मांगने की जरूरत नहीं पड़ती।