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दशहरा केवल रावण के पुतले को जलाने का उत्सव नहीं है, बल्कि यह आत्मा की यात्रा का प्रतीक है। यह पर्व हमें याद दिलाता है कि असली युद्ध बाहर नहीं, हमारे मन के भीतर होता है। जिस प्रकार श्रीराम ने भगवान की भक्ति और धर्म को आधार बनाकर रावण का वध किया, वैसे ही हर साधक को अपने भीतर बैठे काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार रूपी रावणों को भक्ति की अग्नि से जलाना होता है।
🌺 भक्ति – विजय का गुप्त शस्त्र
भक्ति केवल ईश्वर की आराधना नहीं, बल्कि वह शक्ति है जो साधक को अडिग बना देती है। जब मनुष्य अपने प्रभु पर पूर्ण समर्पण करता है, तो संसार की सबसे कठिन बाधाएँ भी उसका मार्ग रोक नहीं पातीं। दशहरा यही सिखाता है कि सच्ची विजय तलवार से नहीं, बल्कि भक्ति और विश्वास से मिलती है।
🔥 दशहरा का आंतरिक संदेश
बाहरी रावण जलाना आसान है, परंतु भीतर का रावण तभी मरेगा जब भक्ति प्रज्वलित होगी।
असली युद्ध अपने मन के विकारों से है।
साधना और नाम-जप ही वे अस्त्र हैं, जो हर इंसान को उसकी असली विजय दिलाते हैं।
जैसे श्रीराम ने हर कदम पर भगवान शिव का स्मरण किया, वैसे ही भक्ति हर विजय का मूल रहस्य है।
🌿 साधक के लिए संदेश
👉 जब तक भीतर का अहंकार जीवित है, तब तक रावण मरा नहीं।
👉 जब तक भक्ति का दीपक प्रज्वलित नहीं होता, तब तक रामराज्य हृदय में स्थापित नहीं होता।
👉 हर दिन को दशहरा मानो – रोज अपने भीतर एक रावण को खत्म करो।
🕉 संतवाणी
“भक्ति वह अग्नि है जो भीतर के अंधकार को जला देती है।
राम नाम वह जल है जो जीवन की हर अशांति को शांति में बदल देता है।”
🌸 इस दशहरे पर केवल रावण का पुतला न जलाएँ,
अपने भीतर की नकारात्मकता को भी भक्ति की लौ में भस्म कर दें।
तभी यह पर्व सच्चे अर्थों में “विजयादशमी” बनेगा। 🌸