
जप के प्रकार
आमतौर पर लोग चार तरह के जप करते हैं:
- वाचक जप – जब हम नाम ज़ोर से बोलते हैं: राम-राम, कृष्ण-कृष्ण।
- उपांशु जप – जब होंठ हिलते हैं, पर आवाज़ बाहर नहीं आती।
- कंठ जप – जब गले से ध्वनि उत्पन्न होती है, जैसे भ्रमरी प्राणायाम में।
- मानसिक जप – जब नाम केवल मन में ही दोहराया जाता है।
इन सबकी अपनी महिमा है, पर इनमें एक कमी है – अगर अचानक शरीर अक्षम हो जाए (जैसे कोमा, या मृत्यु का समय) तो जप रुक जाता है।
सद्गुरु की अमूल्य देन – अजपा जप
श्री परमहंस दयाल जी ने एक अनमोल विधि दी – अजपा जप।
इसमें नाम जप स्वाभाविक रूप से श्वासों के साथ चलता है। इसे कान के भीतर सुना जा सकता है।
👉 शुरुआत में थोड़ा अभ्यास करना पड़ता है:
कानों को बाहरी शोर से अलग करने के लिए रूई या ईयरप्लग लगाएँ।
धीरे-धीरे कान के भीतर की ध्वनि को सुनने का प्रयास करें।
एक समय बाद राम-नाम या गुरु-नाम स्पष्ट सुनाई देने लगता है।
यही है अजपा जप – ऐसा जप जो अपने आप चलता है, चाहे हम सो रहे हों, काम कर रहे हों या अंतिम सांस ले रहे हों।
इसकी विशेषता
यह जप हर पल हो सकता है।
यह श्वासों से जुड़ा है, इसलिए मृत्यु तक चलता रहता है।
इसमें गुरु की पूरी शक्ति और अनुग्रह समाहित है।
धीरे-धीरे साधक हर सांस में नाम को सुनकर आनंद और शांति का अनुभव करता है।
सद्गुरु के वचन
गुरु महाराज जी ने फरमाया:
“नाम के साथ लटक जाओ, कभी छूटो मत।”
यानी हर सांस को नाम से जोड़ो और जीवन का हर क्षण प्रभु चरणों को समर्पित कर दो।
डबल अवेयरनेस – दुनिया और नाम साथ-साथ
साधक को सिखाया गया है कि चलते-फिरते, काम करते समय भी ध्यान स्वांस पर रहे।
जैसे सब्ज़ी काटना, ब्रश करना, नहाना – इन कार्यों में दिमाग ज़्यादा नहीं लगता। ऐसे समय नाम स्मरण और गहरा हो सकता है।
निष्कर्ष
अजपा जप वही सहज मार्ग है जिसमें:
सांसों के साथ नाम जुड़ जाता है,
भीतर से ध्वनि का अनुभव होता है,
और साधक धीरे-धीरे दिव्य आनंद में लीन हो जाता है।
🌸 हर श्वास को गुरु चरणों में समर्पित करें।
🌸 अजपा जप में स्थिर हों।
🌸 और जीवन को पवित्र व आनंदमय बनाएं।
जयकारा बोल मेरे श्री गुरु महाराज की जय 🌹