
अकेलापन: इस संसार में सबसे बड़ा दंड है!
और ‘एकांत’: इस संसार में सबसे बड़ा वरदान!
यह दो समानार्थी दिखने वाले शब्दों के अर्थ में आकाश-पाताल का अंतर है!
अकेलेपन में छटपटाहट है तो एकांत में विश्राम है!
अकेलेपन में घबराहट है तो एकांत में शांति!
जब तक हमारी दृष्टि बाहर की ओर है,
तब तक हम अकेलापन अनुभव करते हैं।
और जैसे ही दृष्टि भीतर की ओर मुड़ी,
तो एकांत अनुभव होने लगता है!
यह जीवन और कुछ नहीं, वस्तुतः:
अकेलेपन से एकांत की ओर एक यात्रा ही है!
ऐसी यात्रा जिसमें पथ भी हम हैं,
पथिक भी हम हैं और गंतव्य भी हम ही हैं!