
एक बार एक गुरु-शिष्य कहीं टहलते हुए जा रहे थे। रास्ते में उन्हें सड़क किनारे एक जोड़ी पुराने जूते रखे मिले। उन्होंने इधर-उधर देखा तो थोड़ी दूर पर एक किसान खेतों में काम कर रहा था। वे जूते उसी के थे। यह देखकर शिष्य को शरारत सूझी। उसने कहा, ‘गुरुजी! क्यों न हम ये जूते कहीं छिपा दें। फिर जब किसान यहां आएगा तो बड़ा मजा आएगा। गुरुजी ने कहा, ‘किसी को परेशान करना अच्छी बात नहीं है, बल्कि जूते छिपाने की बजाय हम दोनों जूतों में एक-एक चांदी के सिक्के डाल देते हैं। फिर पास की झाड़ियों में छुपकर देखते हैं कि क्या होता है?’ जूतों में सिक्के डालकर दोनों झाड़ियों में छिप गए। थोड़ी देर बाद किसान वहां आया। जैसे ही उसने एक जूते में पैर डाला, उसे जूते में कुछ होने का अहसास हुआ। उसने देखा तो चांदी का एक सिक्का जूते में था। किसान को आश्चर्य से इधर-उधर देखा लेकिन उसे कोई नहीं दिखाई दिया। उसने सिक्का जेब में रख लिया। फिर उसने दूसरे जूते में पैर डाला। उसमें भी एक सिक्का निकला। किसान भावुक हो उठा। उसने दोनों हाथ ऊपर उठाकर ईश्वर से कहा, ‘हे भगवान! तू बड़ा दयालु है। आज मेरी बीमार पत्नी की दवा और बच्चों के खाने का इंतजाम तुमने कर दिया। आज मेरा विश्वास दृढ़ हो गया कि तू सबका ख़याल रखता है।’ यह कहकर अपने आंसू पोंछता हुआ किसान घर चला गया। यह नज़ारा देखकर गुरु ने अपने शिष्य से पूछा, ‘अब बताओ, इसमें ज्यादा आनंद आया या तुम्हारे जूते छिपाने में ज्यादा मज़ा आता?’ शिष्य ने जवाब दिया, ‘आज आपने मुझे जीवन की सच्ची सीख दे दी। जो आनंद देने में है, वह किसी और चीज में नहीं।
सीख – किसी जरूरतमंद को कुछ देने या उसकी मदद करने से बढ़कर कोई और पुन्यकार्य नहीं। इसलिए हमें जरूरतमंद लोगों की हमेशा मदद करनी चाहिए।”
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