
एक खुशहाल परिवार, जिसमें माता-पिता, दादा-दादी और भाई-बहन थे. उन्हें अपनी खुशियों पर नाज था. एक दिन ऐसा आया, जब पिता ने साथ छोड़ दिया. अपने बेटे के चले जाने से दादाजी को बेहद अफ़सोस था पर उन्होंने अपनी बहू और पोते-पोती के भविष्य को पहला स्थान दिया और अपने गमों को छोड़कर नयी राह पर चलने का जज्बा अपने घरवालों को दिया. लेकिन एक साल बाद ही उनके पोते की एक दुर्घटना में मृत्यु हो गई.
यह वक्त बहुत गंभीर था, पर इस वक्त में भी दादाजी और उनकी बहू ने संयम से काम लिया. घर की बेटी की ओर ध्यान देते हुए आगे बढ़े. समय के कारण दादाजी उम्र के कारण दादाजी ने भी विदा ले ली. अब घर में बस माँ और उनकी बेटी थीं. एक खुशहाल परिवार बिखर गया था. अब बेटी बड़ी हो रही है, जिसके जीवन के अहम फैसले उसके सामने हैं पर मन में उदासी और बेचैनी है. महज 14 वर्ष की आयु में पिता और भाई को खो देने का तकलीफ है, पर हमेशा अपनी माँ को सीख पर जीवन में आगे बढ़ती रही. हमेशा एक हंसता हुआ चेहरा लिए ही उसने अपने जीवन को गले लगा रखा था.
एक दिन अकेलेपन के बाण टूट गए और उसने भरी हुई आँखों से अपनी माँ से पूछा – माँ, आप हमेशा कहती हो कि हमारी जिंदगी बहुत अच्छी है, दुनिया में बहुत तकलीफ है पर हमारे साथ ईश्वर है, लेकिन मुझे तो यह नहीं लगता. एक-एक करके सब चले गए. आज केवल उनकी यादें हैं. तब माँ ने उसे जवाब दिया – बेटा! मैं मानती हूँ तूने बहुत कम उम्र में अपने पिता और भाई को खो दिया, तुझे उनकी कमी महसूस होती है. लेकिन बेटा तेरे पिता ने इस तरह की व्यवस्था की थी कि हम कभी किसी के आगे हाथ नहीं फैलाना पड़ा, न हमारे सर से छत हटी और न कभी तेरी परवरिश में कोई कमी आई. तेरे और मेरे नसीब में उन सबसे दूर जाना तय था, पर ईश्वर में विश्वास रखते हुए हमने हमेशा उसका आदर करके जिंदगी को गले लगाया. उस कारण हो हमें इस दुःख को सहन करने की ताकत मिली. अगर यह हिम्मत नहीं होती तो आज हमारी जिंदगी एक अभिशाप बन जाती.
सीख – खुशी और गम एक ही सिक्के के दो पहलू हैं और हर एक पहलू जिंदगी में दस्तक देता है. बस व्यक्ति को गम को बड़ा नहीं, बल्कि छोटा करके देखना चाहिए.