
सतगुरु की महिमा अपार है
संतों की वाणी में सतगुरु का अत्यधिक महत्त्व बताया गया है। संतों के अनुसार, सतगुरु वह हैं जो आत्मज्ञान का प्रकाश जलाकर साधक को अज्ञान के अंधकार से मुक्त कराते हैं। (Guru Mahima by Saints) संत कबीर, गुरु नानक, तुलसीदास, रविदास, दादू दयाल, मीराबाई, गुरु अर्जुन देव और अन्य संतों ने अपने भजनों और दोहों में सतगुरु की महिमा का वर्णन किया है। यहाँ हम संतों की वाणी के आधार पर सतगुरु की महिमा का विस्तृत विवेचन करेंगे। Guru Mahima Kabir ji
1. संत कबीर की वाणी में सतगुरु की महिमा
संत कबीर ने गुरु को गोविंद से भी ऊँचा स्थान दिया है। उनका मानना था कि गुरु ही शिष्य को ब्रह्म का साक्षात्कार कराते हैं।
गुरु और गोविंद
“गुरु गोविंद दोऊ खड़े, काके लागूं पाय।
बलिहारी गुरु आपने, गोविंद दियो बताए॥”
(अर्थ: जब गुरु और गोविंद (भगवान) दोनों सामने हों, तो पहले गुरु के चरणों में प्रणाम करना चाहिए, क्योंकि गुरु ने ही हमें भगवान से मिलाया है।)
गुरु के बिना मोक्ष नहीं
“बिना सतगुरु सेवित किए, मिटे न मन का मैल।
जिनि गुरु कीनी आपणी, दरस परे झन जैल॥”
(अर्थ: जब तक सतगुरु की सेवा नहीं की जाती, तब तक मन का अज्ञान नहीं मिटता। गुरु का मार्गदर्शन ही मुक्ति का द्वार खोलता है।)
2. गुरु नानक देव जी की वाणी में सतगुरु की महिमा
सिख परंपरा में सतगुरु का स्थान सर्वोपरि है। गुरु नानक देव जी ने कहा कि सतगुरु के बिना आत्मा सच्चे परमात्मा तक नहीं पहुँच सकती।
गुरु ही ज्ञान का प्रकाश है
“गुरु पारस परसिए, पाषाण करै सो नीर।
गुरु बिन कौन बुझाए जी, बिरहा अगन शरीर॥”
(अर्थ: सतगुरु पारस के समान होते हैं, जो पत्थर (शिष्य) को सोना बना देते हैं। सतगुरु के बिना आत्मा की तृष्णा शांत नहीं हो सकती।)
गुरु ब्रह्म का स्वरूप है
“गुरु ही बोध कराए, गुरु ही सच्चा ज्ञान।
गुरु बिन कोई ना जानिए, गुरु बिन कौन प्रमाण॥”
(अर्थ: गुरु ही शुद्ध ज्ञान कराते हैं, और उनके बिना कोई भी सत्य को नहीं जान सकता।)
3. संत रविदास जी की वाणी में गुरु की महिमा
संत रविदास के अनुसार, सतगुरु वह हैं जो संसार रूपी भवसागर से पार लगाने का साधन बताते हैं।
गुरु की कृपा से ही मुक्ति संभव
“सतगुरु बिना मोक्ष नहीं, सतगुरु बिना ज्ञान।
सतगुरु बिना भवसागर में, पड़े रहे अज्ञानी प्राण॥”
(अर्थ: सतगुरु के बिना मोक्ष संभव नहीं है, और बिना सतगुरु के ज्ञान की प्राप्ति भी नहीं होती।)
गुरु के बिना सच्चा आनंद नहीं
“गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिले न मोक्ष।
गुरु बिन लखै न सत्य को, गुरु बिन मिटै न दोष॥”
(अर्थ: गुरु के बिना न तो ज्ञान प्राप्त होता है, न मोक्ष। गुरु के बिना सत्य का अनुभव नहीं हो सकता और न ही दोष मिट सकते हैं।)
4. संत तुलसीदास की वाणी में गुरु महिमा
गोस्वामी तुलसीदास ने गुरु को ईश्वर का साक्षात रूप बताया है।
गुरु का स्थान सबसे ऊँचा
“बंदऊं गुरु पद कंज, कृपा सिंधु नर रूप हरि।
महामोह तम पुंज, जासु बचन रविकर निकर॥”
(अर्थ: मैं गुरु के चरणों में प्रणाम करता हूँ, जो कृपा के समुद्र हैं। वे महामोह रूपी अंधकार को दूर करने के लिए सूर्य के समान हैं।)
गुरु ही परमात्मा का स्वरूप हैं
“गुरु बिन भव निधि तरइ न कोई।
जो बिरंचि शंकर सम होई॥”
(अर्थ: गुरु के बिना कोई भी संसार रूपी सागर को पार नहीं कर सकता, चाहे वह ब्रह्मा या शंकर के समान ही क्यों न हो।)
5. संत मीराबाई की वाणी में गुरु महिमा
मीराबाई के लिए गुरु प्रेम और भक्ति का मार्ग दिखाने वाले थे।
गुरु ही ब्रह्म की अनुभूति कराते हैं
“मेरे तो गिरधर गोपाल, दूसरो न कोई।
गुरु मिलै तो राम मिलै, संतों की रे सोई॥”
(अर्थ: मेरे लिए केवल गिरधर गोपाल (कृष्ण) ही सब कुछ हैं। यदि सच्चा गुरु मिल जाए तो राम की प्राप्ति हो जाती है।)
6. संत दादू दयाल की वाणी में सतगुरु की महिमा
दादू दयाल जी ने सतगुरु को आत्मज्ञान की कुंजी बताया है।
गुरु के बिना आत्मज्ञान अधूरा
“गुरु बिन ज्ञान कहाँ से आवे।
गुरु ही परमार्थ बतावे॥”
(अर्थ: गुरु के बिना सच्चा ज्ञान कैसे मिलेगा? गुरु ही परम सत्य की ओर ले जाते हैं।)
7. संत नामदेव की वाणी में गुरु की महिमा
संत नामदेव जी ने कहा कि सतगुरु के बिना भक्ति अधूरी रह जाती है।
गुरु ही भक्ति का मार्ग बताते हैं
“गुरु बिना कोई न पायो पार।
गुरु बिन कौन करे उद्धार॥”
(अर्थ: बिना गुरु के कोई भी इस संसार सागर को पार नहीं कर सकता।)
8. अन्य संतों की वाणियों में सतगुरु महिमा
बंदऊँ गुरु पद कंज कृपा सिन्धु नररूप हरी l
महामोह तम पुंज जासु बचन रबी कर निकर ll
मैं उन गुरुमहाराज के चरणकमल की वन्दना करता हूँ, जो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोहरूपी घने अन्धकार के नाश करने के लिए सूर्य-किरणों के समूह हैं l
बंदऊँ गुरु पड पदुम परागा l सुरुचि सुबास सरस अनुरागा l
अमिअ मूरिमय चूरन चारू l सपन सकल भव रुज परिवारू ll
मैं गुरुमहाराज के चरणकमलोंकी रजकी वंदना करता हूँ, जो सुरुचि, सुगंध तथा अनुराग्रूपी रस से पूर्ण हैंl वह अमरमूल का सुन्दर चूर्ण हैं, जो सम्पूर्ण भावरोगोंके परिवार को नाश करने वाला है l
श्री रामायण में सतगुरु की महिमा का ब्यान करते हुए फरमाते हैं –
श्री गुरु पद नख मणि गन ज्योति l सुमिरत दिब्य दृष्टि हिय होती ll
दलन मोह तं सो सप्रकासू l बड़े भाग उर आवई जासु ll
श्री गुरुमहाराज जी के चरण नखों की ज्योति मणियों के प्रकाश के सामान है , जिसके स्मरण करते ही ह्रदय में दिव्य दृष्टि उत्त्पन्न होती है. वह प्रकाश अज्ञानरूपी अन्धकार का नाश करनेवाला है; वह जिसके हृदयमें आ जाता है, उसके बड़े भाग्य हैं.
कबीर साथी सो किया, जाके सुख दुख नहीं कोइ ।
हिलि मिलि ह्नै करि खेलिस्यूँ कदे बिछोह न होइ ॥ 1 ॥
गुरु गोविन्द दोनों खड़े, काके लागू पाँव l
बलिहारी गुरु आपने, गोविन्द दियो बताय ll
यह तन विष की बेलरी, गुरु अमृत की खान l
शीश दिए जो गुरु मिले, तो भी सस्ता जान ll
कबीर सिरजनहार बिन, मेरा हितू न कोइ ।
गुण औगुण बिहड़ै नहीं, स्वारथ बंधी लोइ ॥ 2 ॥
बिन सतगुरु बाचैनहीं, फिरि बूडे भव माहिं l
भवसागर की त्रास में, सतगुरु परें बाहिं ll कबीर जी
सात खण्ड नव द्वीप में, गुरु से बड़ा न कोय ।
कर्ता करे न कर सके, गुरु से सो होय।। संत कबीर l
मोरें मन प्रभु अस विश्वासा ।
राम ते अधिक राम कर दासा ll
इसीलिए समर्थ गुरु सेवा करनी है। प्रभू का गुण गान बिना कपट के सच्चे हृदय से करना है। यह भक्ति का चौथा सोपान है। सच्चे हृदय से अभिप्राय चित्त में केवल प्रभू का ख्याल होना है, उसको याद करने से हृदय प्रदेश में भक्ति की लहरें उठने लगती हैं। गुण गान करना याद करने का सशक्त माध्यम है, जिससे प्रेम बढ़ता है, क्योंकि ख्यालों में जब प्रेमी प्रभू की बिरह वेदना उठने लगती है फिर तो वही वही नजर आने लगता है, अहम स्वयम लुप्त हो जाता है। अहम के लुप्त होते ही प्रेम का फव्वारा फुट पड़ता है और वह आनन्द वर्णन करने से परे है.
सोइ जानइ जेहि देहु जनाई ।
जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई ।।
फिर मनुष्य सर्वज्ञ हो जाता है और स्वासों के खजाने की समाप्ती पर खुशी-खुशी प्रकृति प्रदत्त शरीर को छोड़ प्रभु में लीन होता है.
निष्कर्ष
संतों ने अपनी वाणी में सतगुरु की महिमा को सर्वोपरि बताया है। गुरु ही साधक को ईश्वर तक पहुँचाने का मार्ग दिखाते हैं। संत कबीर, गुरु नानक, तुलसीदास, रविदास, दादू दयाल, मीराबाई, नामदेव और अन्य संतों ने सतगुरु की महत्ता को अपनी रचनाओं में विस्तार से समझाया है। अतः हमें चाहिए कि हम सच्चे सतगुरु की शरण लें और उनके मार्गदर्शन में अपना जीवन सफल बनाएं।