
पुरानो की कथाओं की बात पुरानी हो चुकी है। आज़ ईश्वर डायरेक्ट किसी की भी रक्षा नहीं करते। वह जमाना अलग था, जब वे साकार रुप में कृष्ण बनें थे और उन्होंने द्रोपदी की रक्षा की थी। आज़ ऐसा नहीं है।
ऐसा नहीं है कि, ईश्वर आज़ धरती पर नहीं है। है, ईश्वर आज़ भी धरती पर साकार रूप में विद्यमान है, लेकिन सदगुरुओं के रुप में।
ईश्वर- परब्रह्म परमात्मा अलग होते हैं और देवी-देवता अलग। ईश्वर सर्वोच्च सत्ता है। ईश्वर स्वयं ना किसी की रक्षा करते हैं, न किसी को दंड देते हैं।
पाप पुण्य के आधार पर मनुष्य सुख दुःख भोगता है। जैसे उसके कर्म होंगे वैसा सुख या दुःख उसको भोगना है। और ईश्वर उसमें भेदभाव, या दखल अंदाजी नहीं करते। यहां संबंध सृष्टि पर कर्म और फल, बोओ और कांटों का नियम चलता है। और ईश्वर इसमें इंटरफेस नहीं करते।
मनुष्य की रक्षा करने के लिए ईश्वर ने माता-पिता, सद्गुरु परंपराएं, देवी-देवताओं की नियुक्ति की हुई है।
जो लोग दूसरों के शुभ आशिर्वाद, दुआएं लेते रहते हैं, वहीं दुआएं उनकी रक्षा करती है।
गाय, माय, माय यानी मां और गुरु के आशिर्वाद कभी व्यर्थ नहीं जाते, सत्कर्म कभी व्यर्थ नहीं जाते और सही मायने में यही मनुष्य की रक्षा करते हैं।
अगर मनुष्य रक्षा के लिए सच्चे दिल से ईश्वर से प्रार्थना करता है, तो वह प्रार्थना सुनी जाती है, तब ईश्वर के रूप में हमारे इष्टदेव हमारी मदद करते हैं। कुछ देवी-देवता हमारी रक्षा करते हैं।
आकाश में, इस खाली स्पेस में बहुत सी दिव्य आत्माएं, बहुत सारे एन्जेल होते हैं।हम परमात्मा से प्रेम करते हैं, उनके बारे में जानना चाहते हैं, तो उन्हें खुशी होती है। हम ईश्वर को पुकारते हैं तो वे दिव्य आत्माए हमारे आस-पास आती रहती हैं। तब वे हमारी रक्षा करतें हैं। उनकी मदद से हमें अंत प्रेरणा मिलती रहतीं हैं। कुछ बातें हमें पहले ही पता चलने लगती है, हम सावधान होते हैं। कभी कभी किसी समस्या का समाधान सपने में भी मिलता है। उनकी प्रेरणा से कोई अन्य मनुष्य भी हमारी मदद के लिए आगे आता है।
सदगुरु का उपदेश मनुष्य की रक्षा करता है। गुरु तत्व कभी भी मरता नहीं है। बहुत से अशरीरी सदगुरु भी होते हैं, जो हमे जानते हैं, लेकिन हम उन्हें नहीं जानते। सच्चे मन से प्रार्थना करने पर वे हमारी रक्षा करते हैं। हमे सही राह दिखाते है।
सृष्टि नियमों में चलतीं है। अगर हमारे खाते में पुण्य, सत्कर्म, शुभ आशीर्वादों रुपी पैसे हैं, तो कोई न कोई हमारी रक्षा के लिए आगे जाएगा।
जो मनुष्य, मनुष्य शरीर की प्राप्ति होकर भी केवल काम क्रोध में लिप्त रहना चाहता है, उसकी रक्षा नहीं होती।
जो केवल स्वार्थ से भरा हुआ है, उसकी रक्षा नहीं होती।
जो मनुष्य होकर भी निगुरा है। जो गुरु चरणों से प्रेम करना नहीं जानता, जो गुरु और गीता को नहीं जानता, जानने का प्रयास भी नहीं करता, उसे निगुरे पण का श्राप लगता है, उसकी रक्षा नहीं होती।