

निश्चित रूप से, मैं महामृत्युंजय मंत्र की रचना की कथा को और विस्तार से बताती हूँ:
मृकण्डु ऋषि और संतान की कामना:
प्राचीन काल में, मृकण्डु नाम के एक धर्मात्मा ऋषि अपनी पत्नी मरुद्वती के साथ रहते थे। वे दोनों ही भगवान शिव के अनन्य भक्त थे और एक सात्विक जीवन व्यतीत करते थे। हालाँकि, उनके जीवन में एक बड़ा दुख था – वे নিঃসন্তান थे। संतान की कमी उन्हें हमेशा खटकती रहती थी और वे एक पुत्र की कामना करते थे जो उनके कुल को आगे बढ़ा सके।
पुत्र प्राप्ति की तीव्र इच्छा से प्रेरित होकर, मृकण्डु ऋषि और मरुद्वती ने भगवान शिव की घोर तपस्या करने का निर्णय लिया। उन्होंने कठोर नियमों का पालन करते हुए, अन्न-जल त्यागकर, एकांत में ध्यान और प्रार्थना में अपना समय बिताया। उनकी भक्ति और तपस्या इतनी तीव्र थी कि स्वयं भगवान शिव प्रसन्न हुए और उन्हें दर्शन दिए।
भगवान शिव का वरदान और दुविधा:
भगवान शिव ने ऋषि और उनकी पत्नी की भक्ति देखकर उन्हें वरदान मांगने के लिए कहा। मृकण्डु ऋषि ने उनसे एक पुत्र की कामना की। तब भगवान शिव ने उन्हें एक ऐसा वरदान दिया जिसने उन्हें खुशी के साथ-साथ चिंता में भी डाल दिया। शिव ने कहा कि उन्हें एक तेजस्वी, गुणी और सर्वज्ञानी पुत्र प्राप्त होगा, लेकिन उसकी आयु केवल सोलह वर्ष की होगी। दूसरा विकल्प यह था कि उन्हें सौ मूर्ख और अल्पायु पुत्र प्राप्त हो सकते थे।
ऋषि मृकण्डु ने गहन विचार के बाद पहले विकल्प को चुना। उन्होंने सोचा कि एक गुणी पुत्र थोड़े समय के लिए भी उनके जीवन को सार्थक बना देगा। समय आने पर, मरुद्वती ने एक सुंदर और तेजस्वी पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम उन्होंने मार्कण्डेय रखा।
मार्कण्डेय का ज्ञान और भक्ति:
मार्कण्डेय बचपन से ही असाधारण प्रतिभा के धनी थे। उन्होंने अल्प समय में ही वेदों, शास्त्रों और सभी प्रकार के ज्ञान को आत्मसात कर लिया। उनके माता-पिता ने उन्हें भगवान शिव की भक्ति और उपासना के महत्व के बारे में भी सिखाया था। मार्कण्डेय बड़े होकर एक परम शिवभक्त बने।
जब मार्कण्डेय 16 वर्ष के होने वाले थे, तो उनके माता-पिता अत्यंत दुखी रहने लगे। उन्होंने अपने पुत्र को उसकी अल्पायु के बारे में बताया। यह सुनकर मार्कण्डेय विचलित नहीं हुए, बल्कि उन्होंने अपने माता-पिता को সান্ত্বনা दी और कहा कि वे अपनी रक्षा के लिए भगवान शिव की शरण लेंगे।
मृत्यु का समय और भगवान शिव की आराधना:
अपनी नियत मृत्यु के दिन, जब यमराज के दूत मार्कण्डेय के प्राण हरने आए, तो उन्होंने देखा कि बालक शिवलिंग से लिपटकर भगवान शिव की गहन आराधना में लीन है और एक विशेष मंत्र का जाप कर रहा है। यमराज के दूत उस बालक के तेज और भक्ति से भयभीत हो गए और यमराज के पास लौट गए।
यमराज स्वयं मार्कण्डेय को लेने आए। उन्होंने बालक को शिवलिंग से खींचने का प्रयास किया, लेकिन मार्कण्डेय ने शिवलिंग को और कसकर पकड़ लिया। जब यमराज ने अपना पाश (मृत्यु का फंदा) बालक पर डाला, तो वह गलती से शिवलिंग पर जा गिरा। यह देखकर भगवान शिव अत्यंत क्रोधित हुए और शिवलिंग से स्वयं प्रकट हुए।
भगवान शिव का हस्तक्षेप और वरदान:
भगवान शिव ने यमराज को कठोर शब्दों में फटकारा और अपने भक्त को दंडित करने के उनके साहस पर क्रोध व्यक्त किया। यमराज ने भगवान शिव से क्षमा मांगी और प्रकृति के नियमों का हवाला दिया। तब भगवान शिव ने अपने भक्त मार्कण्डेय पर अपनी कृपा बरसाई और उन्हें दीर्घायु का वरदान दिया। उन्होंने यह भी आशीर्वाद दिया कि जो कोई भी इस मंत्र का सच्चे मन से जाप करेगा, वह अकाल मृत्यु के भय से मुक्त हो जाएगा और उसे स्वास्थ्य, समृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति प्राप्त होगी।
महामृत्युंजय मंत्र की शक्ति और महत्व:
जिस मंत्र का जाप मार्कण्डेय ने भगवान शिव की आराधना करते समय किया था, वही मंत्र महामृत्युंजय मंत्र के नाम से प्रसिद्ध हुआ। यह मंत्र मृत्यु पर विजय प्राप्त करने वाला माना जाता है और इसमें अद्भुत शक्ति निहित है। इस मंत्र के नियमित जाप से अनेक लाभ होते हैं:
- दीर्घायु: यह मंत्र आयु वृद्धि और स्वस्थ जीवन प्रदान करता है।
- आरोग्य: यह रोगों और बीमारियों से मुक्ति दिलाता है।
- सुरक्षा: यह नकारात्मक शक्तियों और दुर्घटनाओं से रक्षा करता है।
- मानसिक शांति: यह मन को शांति और स्थिरता प्रदान करता है।
- आध्यात्मिक उन्नति: यह भगवान शिव के साथ संबंध को मजबूत करता है और आध्यात्मिक विकास में सहायक होता है।
इस प्रकार, ऋषि मार्कण्डेय की भक्ति, भगवान शिव की कृपा और उस शक्तिशाली मंत्र के कारण महामृत्युंजय मंत्र की रचना हुई, जो आज भी करोड़ों लोगों के लिए आशा और शक्ति का स्रोत बना हुआ है। यह मंत्र हमें मृत्यु के भय से मुक्त होकर जीवन को पूर्णता से जीने की प्रेरणा देता है।