
परमहंस सतगुरु की महिमा इस प्रकार व्याख्यायित की गई है:
कोटि-कोटि करूँ वंदना, सतगुरु परम कृपाल।
श्री परमहंस दयानिधि, भक्तन के प्रतिपाल॥
दिनकर हैं परमार्थ के, उदित हुए जग माहिं।
श्री परमहंस गुरुदेव जी, तुम सम दूजा नाहिं॥

हम विनम्रतापूर्वक प्रार्थना करते हैं—हे मेरे परमहंस सतगुरु जी! हे दया के महासागर! हे भक्तों के रक्षक! आपके परम पावन चरण-कमलों में हमारी कोटि-कोटि वंदना स्वीकार करें। हे कृपासिंधु! आप परमार्थ पथ के सूर्य हैं, जो इस संसार-सागर में अज्ञान के अंधकार को मिटाने के लिए उदित हुए हैं। हे मेरे परमहंस सतगुरु जी! आपके समान प्रेम और भक्ति का पथ दर्शाने वाला और कौन हो सकता है?
यहाँ परमहंस सतगुरुओं की महिमा का वर्णन किया गया है। “परमहंस” शब्द की महिमा का वर्णन करना किसी तुच्छ जीव की सामर्थ्य से परे की बात है। यह शब्द इतना महान और पवित्र है कि इसकी व्याख्या करने से पहले भी बार-बार क्षमा प्रार्थना करनी पड़ती है। हम अपने सतगुरु जी से बारंबार क्षमा याचना करते हैं और अपनी सीमित बुद्धि से, उनकी अपार कृपा के सहारे, इस शब्द की व्याख्या करने का प्रयास कर रहे हैं।
“परमहंस” शब्द की व्याख्या
“परमहंस” दो शब्दों “परम” और “हंस” से मिलकर बना है।
- “हंस” शब्द का पारमार्थिक एवं आध्यात्मिक अर्थ आत्मा से है।
- अंग्रेज़ी में “हंस” को Swan कहा जाता है।
- हंस की विशेषता यह होती है कि यदि दूध और पानी को मिलाया जाए, तो वह केवल दूध ग्रहण कर लेता है और जल को छोड़ देता है।
यह गुण केवल हंस के भीतर पाया जाता है। आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो यही गुण आत्मा में भी होता है—सत्य को असत्य से, सार को असार से अलग करने की क्षमता आत्मा के भीतर निहित होती है। यह आत्मा का स्वाभाविक गुण है, क्योंकि आत्मा स्वयं सत्-चित्-आनंद स्वरूप परमात्मा का अंश है।
जिसके भीतर यह गुण जागृत हो जाता है, वह परमात्मा के निकट पहुँच जाता है। सत, चित्त और आनंद—ये तीन आत्मा के मौलिक गुण हैं। अतः हंस शब्द आत्मा का प्रतीक है।
अब “परमहंस” शब्द की ओर ध्यान दें—
“परम” का अर्थ है सर्वोच्च, और “हंस” का अर्थ है आत्मा।
अतः “परमहंस” का सीधा और स्पष्ट अर्थ है—परम-सत्य, परम-चित्त और परम-आनंद।
यह कोई साधारण उपाधि नहीं, बल्कि स्वयं परमात्मा का ही स्वरूप है। “परमहंस” किसी मानव को दी जाने वाली उपाधि नहीं, बल्कि यह परमात्मा का ही दूसरा नाम है—परम-आत्मा, परम-हंस।
हंस का स्वाभाविक गुण असत्य से सत्य को अलग करना होता है। जो इस स्थिति को प्राप्त कर लेता है, वही “परमहंस सतगुरु” कहलाता है। वास्तव में, परमहंस सतगुरु स्वयं कुल-मालिक, परमेश्वर, परमात्मा के ही प्रत्यक्ष स्वरूप होते हैं।
श्री परमहंस सतगुरु जी ने जगत कल्याण के लिए ही ॐ श्री परमहंसाय नमः मन्त्र (Om Shri Paramhansay Namah Mantra) दिया है। इस मंत्र के बारे में और विस्तार से यहाँ बताया गया है।