
हिंदू धर्म में पितृ पक्ष का खास महत्व होता है। इसे श्राद्ध पक्ष भी कहा जाता है। हिंदू पंचांग के अनुसार, हर साल भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक यह पक्ष चलता है। यह समय पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए समर्पित माना जाता है। धार्मिक मान्यता है कि इस दौरान पिंडदान, तर्पण और श्राद्ध करने से पितर प्रसन्न होते हैं और हमें उनका आशीर्वाद प्राप्त होता है। मान्यता है कि जो लोग अपने पितरों का श्राद्ध पूरी श्रद्धा और विधिपूर्वक करते हैं, उनके जीवन में सुख-समृद्धि बनी रहती है। ऐसे में आइए जानते हैं पितृ पक्ष की शुरुआत कब से हो रही है।
पितृलोक और पितृपक्ष
कहते हैं कि, पितृलोक में उन आत्माओं को भी स्थान मिलता है जो किसी कारण से अपना जीवन पूरा किए बिना किसी दुर्घटना की वजह से देह त्याग करके चले जाते है। जब पितृपक्ष आता है तब पितृलोक से अन्य लोकों में स्थित पितरों यानी पूर्वजों की आत्मा को वापस मृत्युलोक में अपने परिजनों के पास 15 दिनों तक रहने का अवसर मिलता है।
पितृ पक्ष में पितरों को अन्न जल क्यो देते हैं
गरुड़ पुराण, कठोपनिषद सहित अनेक ग्रंथों में वर्णित है कि, पितृपक्ष में पितरों की आत्मा जब धरती पर आती है तो यह अपने वंशजों और संतानों से बहुत उम्मीद और आस लगाए रहते हैं कि इनके पुत्र और संतान इन्हें जल देंगे, और अन्न से पिंडदान करेंगे। कहते हैं कि पितृपक्ष में जो अन्न जल पितरों को प्राप्त होता है उससे तृप्त होकर वह पूरे साल जहां भी रहते हैं सुख पाते हैं। और प्रसन्न होकर अपने वंश की वृद्धि और उन्नति का आशीर्वाद देते हैं।
कब से शुरू हो रहा है पितृ पक्ष?
पंचांग के अनुसार, पितृ पक्ष भाद्रपद शुक्ल पूर्णिमा से शुरू होता है और आश्विन मास की अमावस्या तक चलता है। इसे महालय अमावस्या भी कहा जाता है। इस साल श्राद्ध पक्ष 7 सितंबर 2025 से शुरू हो रहा है और 21 सितंबर को श्राद्ध पक्ष समाप्त होगा।
पितृ पक्ष की तिथियां
पूर्णिमा श्राद्ध- 07 सितम्बर 2025, रविवार
प्रतिपदा श्राद्ध- 08 सितम्बर 2025, सोमवार
द्वितीया श्राद्ध- 09 सितम्बर 2025, मंगलवार
तृतीया श्राद्ध- 10 सितम्बर 2025, बुधवार
चतुर्थी श्राद्ध- 10 सितम्बर 2025, बुधवार
पञ्चमी श्राद्ध- 11 सितम्बर 2025, बृहस्पतिवार
महा भरणी- 11 सितम्बर 2025, बृहस्पतिवार
षष्ठी श्राद्ध- 12 सितम्बर 2025, शुक्रवार
सप्तमी श्राद्ध- 13 सितम्बर 2025, शनिवार
अष्टमी श्राद्ध- 14 सितम्बर 2025, रविवार
श्राद्ध किस आधार पर किया जाता है?
श्राद्ध कर्म मृत्यु तिथि के आधार पर किया जाता है। यानी जिस दिन व्यक्ति की मृत्यु हुई थी, पितृ पक्ष के उसी दिन उसका श्राद्ध किया जाता है। अगर किसी को अपने पूर्वज की मृत्यु तिथि याद नहीं है, तो वे अमावस्या के दिन सर्वपितृ श्राद्ध कर सकते हैं। यह तिथि उन सभी पितरों के लिए होती है जिनकी मृत्यु तिथि मालूम न हो।
पितृपक्ष में पितरों की पूजा क्यों जरूरी है
जबकि जिनके परिवार में लोग पितरों को अन्न जल और पिंडदान नहीं देते हैं उनके पितर जल और अन्न के बिना व्याकुल होकर तड़पते हैं और क्रोधित होकर अपने ही वंशजों को शाप देते हैं जिससे वंश की वृद्धि में कठिनाई आती है और घर परिवार में कई तरह की परेशानियां आने लगती हैं।
पितृपक्ष के नियम
गरुड़ पुराण में बताया गया है कि पितृपक्ष के दौरान हर व्यक्ति को सात्विक रहना चाहिए। और द्वार पर आए किसी पशु, जीव और व्यक्ति का अनादर नहीं करे और अन्न एवं जल प्रदान करे। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि पितृगण पितृपक्ष के दौरान किसी भी रूप में अपने परिवार के लोगों के बीच आते हैं और अनादर होने पर दुखी और अनादर होकर चले जाते हैं। इसलिए पितृ पक्ष में पंच बलि का भी नियम है कि जिस तिथि पर माता अथवा पिता की मृत्यु हुई हो उस तिथि पर भोजन बनाकर एक भाग कुत्ते, बिल्ली, गाय, कौआ तथा चींटी को देना चाहिए।
पितृ पक्ष में श्राद्ध का नियम
पितृ पक्ष कुल 15 दिनों का होता है। इसमें पूर्णिमा तिथि को देव और ऋषियों का जल एवं फल से तर्पण किया जाता है। इसके बाद प्रतिपदा से अमावस्या तक हर दिन पितरों का ध्यान करते हुए तर्पण किया जाता है और तिल एवं जल दिया जाता है। इसके साथ ही अपने पूर्वजों की मृत्यु तिथि पर उनका श्राद्ध तर्पण करके ब्राह्मणों को भोजन करवाया जाता है। मान्यता है कि ऐसा करने से पितृगण जिस भी लोक में होते हैं वह सुख आनंद पाते हैं।
क्या है पितृपक्ष का महत्व क्यों कहते हैं इन्हें श्राद्ध ?
अपने पूर्वज पितरों के प्रति श्राद्ध भावना रखते हुए आश्विन कृष्ण पक्ष में पितृ तर्पण और श्राद्धकर्म करना आवश्यक है। इससे स्वास्थ्य समृद्धि, आयु, सुख, शांति, वंशवृद्धि और उत्तम संतान की प्राप्ति होती है। श्राद्धापूर्वक काम करने के कारण ही इसका नाम श्राद्ध है। इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए की श्राद्ध के काम अभीजीत मुहूर्त में करना लाभकारी होता है। पितृपक्ष के दौरान गीता के सातवें अध्याय का पाठ करना बेहद लाभकारी रहता हैं क्योंकि, यह अध्याय पितृ मुक्ति और मोक्ष से जुड़ा हुआ है।
पितरों की आत्मा की शांति के लिए पितृपक्ष में जरूरतमंद लोगों को कपड़ो, तिल, घी, गुड़, सोना चांदी, नकम आदि का दान करना बेहद लाभकारी है। अपनी सुविधा के अनुसार, दान कर्म करना लाभकारी रहता है।
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार पितरों का ऋण श्राद्ध के जरिए चुकाया जा सकता है। पितृपक्ष में श्राद्ध करने से पितृगण प्रसन्न रहते हैं। पितृपक्ष में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए तर्पण या पिंडदान किया जाता है।