
श्री परमहंस सतगुरु जी महिमा और प्रार्थनाएं
ॐ श्री परमहंसाय नमः
आनंद स्वरूप, आत्मस्वरुप में स्थित योगी। मेरे गुरूदेव श्री परमहंस महाराज। मैं उनके श्रीचरणों में बारंबार दंडवत् प्रणाम करता हूं। उनके उपदेश को अपने भीतर उतारने का प्रयास करता हूं।
ॐ श्री परमहंसाय नमः।

आत्मा को द्रष्टा भाव में, साक्षी भाव में रखकर जीवनयापन करने वाले, सदैव आत्मभाव में रहने वाले योगी मेरे गुरूदेव श्री परमहंस महाराज। मैं उनके श्रीचरणों में बारंबार दंडवत् प्रणाम करता हूं।
ॐ श्री परमहंसाय नमः।
देह में रहते हैं वे, संसार में रहते हैं वे। पर देह में रहते हुए भी, संसार में रहते हुए भी देह और संसार से पूरी तरह से निर्लिप्त हैं, मेरे गुरूदेव श्री परमहंस महाराज।
सदैव अपनी शुद्ध बुद्धि एवं चेतन स्वरूप में लीन रहते हैं, मेरे गुरूदेव श्री परमहंस महाराज। ऐसे मेरे गुरूदेव श्री परमहंस महाराज जी के श्रीचरणों में मैं बारंबार दंडवत् प्रणाम करता हूं। उनसे अपने कल्याण के लिए आत्मज्ञान की भिक्षा मांगता हूं।
ॐ श्री परमहंसाय नमः।
परमहंस हैं, मेरे गुरूदेव।
सर्वव्यापी आत्मा में स्थित हैं, मेरे गुरूदेव।
घट-घट वासी हैं, मेरे गुरूदेव।
मेरे गुरूदेव श्री परमहंस महाराज। मैं उनके श्रीचरणों में बारंबार दंडवत् प्रणाम करता हूं।
ॐ श्री परमहंसाय नमः।
संसार काजल की कोठरी है। इसमें किसी को दाग़ ना लगे, ऐसा हो ही नहीं सकता। लेकिन मेरे गुरूदेव निर्मल हैं। संसार से सदा विरक्त रहते हैं, मेरे गुरूदेव।
आत्मानंद से, सच्चिदानन्द से सदा तृप्त रहते हैं, मेरे गुरूदेव।
मेरे गुरूदेव श्री परमहंस महाराज। मैं उनके श्रीचरणों में बारंबार दंडवत् प्रणाम करता हूं।
ॐ श्री परमहंसाय नमः।
संसार में रहते हुए भी उन्होंने संसार का पूरी तरह से त्याग किया हुआ है। सदा मुक्त हैं, मेरे गुरूदेव।
मुक्तात्मा हैं वे। जड़-जीवों को मुक्ति का ही उपदेश देते हैं , मेरे गुरूदेव।
जीवन-मुक्त योगी हैं, मेरे गुरूदेव श्री परमहंस महाराज।
मैं उनके श्रीचरणों में बारंबार दंडवत् प्रणाम करता हूं।
ॐ श्री परमहंसाय नमः।
उनके विचारों का प्रवाह निरंतर ईश्वर की ओर एवं निरंतर ईश्वर में ही होता है। सदा ईश्वर में लीन रहते हैं, मेरे गुरूदेव। सदा ईश्वर से एकरूप रहते हैं, मेरे गुरूदेव।
साकार ईश्वर ही हैं, मेरे परमहंस महाराज।
ऐसे मेरे गुरूदेव श्री परमहंस महाराज। मैं उनके श्रीचरणों में बारंबार दंडवत् प्रणाम करता हूं।
ॐ श्री परमहंसाय नमः।
कभी-कभी संत समागम में होते हैं ,और ज्यादा-से- ज्यादा समय एकांत में होते हैं, मेरे गुरूदेव।
इस समय धरती पर सच्चे सद्गुरु हैं, केवल मेरे गुरूदेव।
आत्मा को परमात्मा से जोड़ने की शक्ति है, मेरे गुरूदेव में। ऐसे हैं मेरे गुरूदेव।
गुरू-दीक्षा के समय इसी शक्ति का उपयोग करते हैं, मेरे गुरूदेव।
मेरे गुरूदेव श्री परमहंस महाराज। मैं उनके श्रीचरणों में बारंबार दंडवत् प्रणाम करता हूं।
ॐ श्री परमहंसाय नमः।
जीवन-मुक्त साधु हैं श्री परमहंस गुरू महाराज।
आत्मा में स्थिर हैं श्री परमहंस गुरू महाराज।
हमारे कल्याण के लिए धरती पर अवतरित हुए हैं, श्री परमहंस गुरू महाराज।
परमहंस महाराज मेरे गुरूदेव, मैं उनके श्रीचरणों में बारंबार दंडवत् प्रणाम करता हूं।
ॐ श्री परमहंसाय नमः।
उनके लिए सभी धर्म समान हैं।
उनके लिए स्त्री-पुरुष समान हैं।
उनके लिए कोई छोटा-बड़ा नहीं।
उनके लिए ईश्वर एक है और वह सर्वव्यापक है।
परम पवित्र ऋषि-तुल्य आत्मा हैं मेरे गुरूदेव।
वर्तमान समय में सबके सद्गुरु हैं, मेरे गुरूदेव।
मेरे श्री परमहंस महाराज।
मैं उनके श्रीचरणों में बारंबार दंडवत् प्रणाम करता हूं।
ॐ श्री परमहंसाय नमः।
वे आत्मा में स्थिर रहते हैं। उन्हें देहाध्यास नहीं होता यानी “मैं शरीर हूं, शरीर मेरा है”..इस देहाभिमान से परे हैं मेरे गुरूदेव। उनका अवतार केवल लोक-कल्याण के लिए, लोगों की आत्मजागृति के लिए ही हुआ है। मानव जीवन का सबसे बड़ा उद्देश्य आत्मज्ञान है और मेरे परमहंस गुरू महाराज यही जागरूकता फैलाने के लिए अवतरित हुए हैं।
आत्मज्ञान के दाता हैं मेरे गुरूदेव। मैं उनके श्रीचरणों में बारंबार दंडवत् प्रणाम करता हूं।
ॐ श्री परमहंसाय नमः।
सच्चे योगी, सच्चे संन्यासी हैं, मेरे गुरूदेव।
आत्मा को सधना ही उनके जीवन का लक्ष्य है। आत्मा की अनवरत उन्नति ही उनके जीवन का लक्ष्य है।
वे आश्रमों के कार्यों की देखरेख एवं उनकी वृद्धि में संलग्न रहते हैं, फिर भी पूर्णत: निस्पृह रहते हैं, मेरे गुरूदेव।
संपूर्ण मोह-माया से रहित हैं, मेरे गुरूदेव।
मेरे गुरूदेव श्री परमहंस महाराज। मैं उनके श्रीचरणों में बारंबार दंडवत् प्रणाम करता हूं। मैं उनके गुणों को अपने भीतर उतार लेने का प्रयास करूंगा।
ॐ श्री परमहंसाय नमः।
परमहंसों का सिद्धांत है कि वे यथासंभव दूसरों की सेवा करें, दूसरों का भला करें और अपनी सेवा किसी से भी ना करवाएं। ऐसे ही हैं मेरे गुरूदेव श्री परमहंस महाराज।
मैं उनके श्रीचरणों में बारंबार दंडवत् प्रणाम करता हूं।
मैं उनके गुणों को अपने भीतर धारण करूंगा। उन्हें अपने भीतर उतार लेने का प्रयास करूंगा।
ॐ श्री परमहंसाय नमः।
सद्गुरू के श्रीचरणों में कोटि- कोटि दंडवत् प्रणाम।
हे मेरे परमहंस महाराज ! हे मेरे गुरूदेव ! मुझे शुभ आशीर्वाद दीजिए कि मैं आपके सभी गुणों को अपने भीतर धारण कर सकूं।
हे योगी ! मैं आपकी कृपा से ब्रह्मविद्या को प्राप्त हो जाऊं।
मुझे आपके श्रीचरणों से प्रीति हो।
गुरूवचनों में मेरी प्रीति हो।
मुझे गुरूभक्ति अच्छी लगनी लगे।
आपके श्रीचरणों में बारंबार दंडवत् प्रणाम, प्रभु !
ॐ श्री परमहंसाय नमः।
मेरी गलतियां क्षमा करें, प्रभु !
मुझे प्रेम और भक्ति का दान दें, प्रभु !
मैं संपूर्ण रुप से आपकी शरण में हूं, शरणागत की लाज रखें,मेरे प्रभु !
धन्यवाद आपका!
ॐ श्री परमहंसाय नमः।