
एक मित्र, जिनकी पत्नी का स्वर्गवास हो गया था, ने अपनी दिनचर्या में सुबह-शाम पार्क में दोस्तों के साथ टहलना, गप्पें मारना और पास के मंदिर में दर्शन करना शामिल कर लिया था। हालाँकि, घर में उन्हें किसी प्रकार की कोई परेशानी नहीं थी। सभी उनका बहुत ध्यान रखते थे, लेकिन आज उनके सभी दोस्त चुपचाप बैठे थे। एक दोस्त को वृद्धाश्रम भेजने की बात से सभी दुःखी थे।
तभी उस मित्र ने चुप्पी तोड़ते हुए कहा, “आप सब हमेशा मुझसे पूछते थे कि मैं भगवान से तीसरी रोटी क्यों माँगता हूँ? आज बतला देता हूँ।”
कमल ने पूछा, “क्या बहू तुम्हें सिर्फ तीन रोटी ही देती है?”
बड़ी उत्सुकता से एक दोस्त ने पूछा, “नहीं यार! ऐसी कोई बात नहीं है, बहू बहुत अच्छी है। असल में, रोटी चार प्रकार की होती है।”
“पहली ‘सबसे स्वादिष्ट’ रोटी ‘माँ’ की होती है, जो ‘ममता’ और ‘वात्सल्य’ से भरी हुई होती है। जिससे पेट तो भर जाता है, पर मन कभी नहीं भरता।”
एक दोस्त ने कहा, “सोलह आने सच, पर शादी के बाद माँ की रोटी कम ही मिलती है।” उन्होंने आगे कहा, “हाँ, वही तो बात है।”
“दूसरी रोटी पत्नी की होती है, जिसमें अपनापन और ‘समर्पण’ भाव होता है, जिससे ‘पेट’ और ‘मन’ दोनों भर जाते हैं।”
“क्या बात कही है यार?” एक दोस्त ने कहा, “ऐसा तो हमने कभी सोचा ही नहीं।”
“फिर तीसरी रोटी किसकी होती है?” एक दोस्त ने सवाल किया।
“तीसरी रोटी बहू की होती है, जिसमें सिर्फ ‘कर्तव्य’ का भाव होता है, जो कुछ-कुछ स्वाद भी देती है और पेट भी भर देती है, और वृद्धाश्रम की परेशानियों से भी बचाती है।” थोड़ी देर के लिए वहाँ चुप्पी छा गई।
“लेकिन ये चौथी रोटी कौन सी होती है?” मौन तोड़ते हुए एक दोस्त ने पूछा।
“चौथी रोटी नौकरानी की होती है। जिससे न तो इंसान का ‘पेट’ भरता है, न ही ‘मन’ तृप्त होता है, और ‘स्वाद’ की तो कोई गारंटी ही नहीं है।”
“तो फिर हमें क्या करना चाहिए यार?” एक दोस्त ने चिंता से पूछा।
उस मित्र ने गहरी बात कही, “माँ की हमेशा पूजा करो, पत्नी को सबसे अच्छा दोस्त बनाकर जीवन जियो, बहू को अपनी बेटी समझो और छोटी-मोटी ग़लतियाँ नज़रअंदाज़ कर दो। बहू भी खुश रहेगी तो बेटा भी ध्यान रखेगा। यदि हालात चौथी रोटी तक ले आएँ तो भगवान का आभार जताओ कि उसने जीवित रखा हुआ है, और अब स्वाद पर ध्यान मत दो, केवल जीने के लिए थोड़ा कम खाओ ताकि आराम से बुढ़ापा कट जाए।”
बड़ी खामोशी से दोस्त सोच रहे थे, “वाकई हम कितने खुशकिस्मत हैं।”