
एक आश्रम में संत रहते थे जो कि बच्चों को शिक्षा देने का कार्य करते थे. दूर-दूर से बच्चे आकर संत से शिक्षा ग्रहण करते थे. एक दिन उनके आश्रम में एक नया शिष्य आता है. संत को शिकायत करते हैं और उसका परिचय अन्य शिष्यों से करवाते हैं. नया शिष्य चोरी करने की भावना से आश्रम में रहने लगा और जब भी उसे मौका मिलता, वह अन्य शिष्यों का सामान चुरा लेता. वहीं एक दिन कुछ शिष्य उसे चोरी करते हुए पकड़ लेते हैं और फ़ौरन संत के पास ले जाते हैं. संत को शिष्य बताते हैं कि किस तरह से वो उनका सामान चोरी कर रहा था. शिष्यों की बात सुनने के बाद चोरी करने वाले लड़के को संत कुछ नहीं कहते और सभी शिष्यों को वापस भेज देते हैं. संत द्वारा चोरी करने पर कुछ न कहे जाने पर हर कोई हैरान हो जाता है. वहीं कुछ दिनों बाद फिर वही लड़का चोरी करते हुए पकड़ा जाता है. फिर से अन्य शिष्य उसको संत के पास ले जाते हैं और संत से चोरी की शिकायत करते हैं. संत एक बार फिर से कुछ नहीं कहते और ऐसे ही छोड़ देते हैं. संत द्वारा चोरी करने वाले लड़के को आश्रम से न निकाले जाने पर अन्य शिष्य नाराज़ हो जाते हैं और अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करते हैं. तब संत शिष्यों को समझाते हैं कि वह लड़का इस आश्रम में नया है और बुरी आदत में फंसा हुआ है. व्यक्ति को आदतों को बदलने में समय लगता है. इससे पहले वह जहां रहा करता था, वहां से इसने चोरी करना सीखा है. इस आश्रम में अच्छी बातें पढ़ाई-सिखाई जाती है और एक दिन यह लड़का भी अच्छा ज्ञान हासिल करने के बाद सुधर जाएगा. अगर मैं उसको आश्रम से निकाल दूंगा तो वह चोरी करना नहीं छोड़ेगा तथा कही और जाकर चोरी करने लग जाएगा. लेकिन अगर मैं उसे इस आश्रम में रहने दूंगा तो वह तुम लोगों के साथ रहकर सुधर जाएगा. संत की बात सुनकर शिष्यों को अपनी गलती का अहसास हो गया और सभी शिष्यों को ये समझ में आ गया कि अच्छे माहौल में रहने से और अच्छी बातें सुनने से बुरे से बुरा व्यक्ति सही रास्ते पर आ जाता है. सभी शिष्य संत से क्षमा मांगते हैं और वादा करते हैं कि वे उस लड़के को सुधारने में संत की मदद करेंगे.
सीख – जिन लोगों के अंदर बुरी आदतें होती हैं उन्हें सज़ा देने की जगह अच्छा ज्ञान दें ताकि वो सुधर जाएं और एक बेहतर इंसान बन पाएं.”