
सनातन धर्म, जिसे ‘सनातन धर्म’ भी कहा जाता है, दुनिया के सबसे पुराने धर्मों में से एक है। ‘सनातन’ का अर्थ है ‘शाश्वत’ या ‘अनन्त’, और ‘धर्म’ का अर्थ है ‘कर्तव्य’, ‘नियम’ या ‘सत्य’। इस प्रकार, सनातन धर्म का अर्थ है ‘शाश्वत सत्य’ या ‘अनन्त कर्तव्य’।
इसे किसी एक संस्थापक या विशिष्ट समय-सीमा से नहीं जोड़ा जा सकता है, बल्कि यह भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीन वैदिक परंपराओं और दर्शनों से विकसित हुआ है। इसमें विभिन्न आध्यात्मिक और दार्शनिक परंपराओं का समावेश है, और यह अपने अनुयायियों को जीवन जीने का एक व्यापक तरीका प्रदान करता है।
सनातन धर्म को सर्वश्रेष्ठ मानने के कई कारण बताए जाते हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख इस प्रकार हैं:
1.प्राचीनता और शाश्वतता:
- ‘सनातन’ का अर्थ है ‘शाश्वत’ या ‘हमेशा रहने वाला’। माना जाता है कि सनातन धर्म किसी एक व्यक्ति या समय विशेष से बंधा हुआ नहीं है, बल्कि यह ब्रह्मांड के नियमों और शाश्वत सत्यों पर आधारित है।
- कुछ मान्यताओं के अनुसार, यह धर्म उतना ही पुराना है जितना कि मानव सभ्यता और सृष्टि स्वयं। इसके मूल सिद्धांत हमेशा प्रासंगिक और अपरिवर्तनीय माने जाते हैं।
2.व्यापकता और समावेशिता:
- सनातन धर्म किसी एक संप्रदाय या विचारधारा तक सीमित नहीं है। इसमें विभिन्न प्रकार की उपासना पद्धतियां, दार्शनिक विचार और जीवन जीने के तरीके शामिल हैं।
- यह विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा को मान्यता देता है, जो एक ही परम সত্তा के विभिन्न रूप माने जाते हैं। इस प्रकार, यह विभिन्न आस्थाओं और रुचियों वाले लोगों को स्वीकार करता है।
- इसमें व्यक्तिगत स्वतंत्रता और आध्यात्मिक विकास के लिए अनेक मार्ग उपलब्ध हैं, जैसे कि योग, ध्यान, कर्म, भक्ति और ज्ञान।
3.जीवन का समग्र दृष्टिकोण:
- सनातन धर्म केवल पूजा-पाठ या कर्मकांडों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह जीवन के हर पहलू को स्पर्श करता है। इसमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष जैसे जीवन के चार लक्ष्यों (पुरुषार्थों) का संतुलित विचार किया गया है।
- यह व्यक्ति को सामाजिक, नैतिक और आध्यात्मिक कर्तव्यों का पालन करने के लिए प्रेरित करता है।
- विभिन्न आयु और सामाजिक स्थितियों के अनुसार जीवन के विभिन्न चरणों (आश्रम व्यवस्था) का वर्णन किया गया है, जो व्यक्ति को एक व्यवस्थित और उद्देश्यपूर्ण जीवन जीने में मार्गदर्शन करता है।
4.कर्म और पुनर्जन्म का सिद्धांत:
- सनातन धर्म कर्म के सिद्धांत पर दृढ़ता से विश्वास करता है, जिसके अनुसार प्रत्येक कार्य का परिणाम होता है, चाहे वह अच्छा हो या बुरा।
- पुनर्जन्म का सिद्धांत यह बताता है कि आत्मा अमर है और मृत्यु के बाद नए शरीर धारण करती है। यह सिद्धांत व्यक्ति को अपने कर्मों के प्रति जिम्मेदार बनाता है और जीवन के अनन्त चक्र को समझने में मदद करता है।
5.नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों पर जोर:
- सनातन धर्म सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, संतोष, त्याग और तपस्या जैसे उच्च नैतिक और आध्यात्मिक मूल्यों पर बल देता है।
- यह सभी प्राणियों के प्रति सम्मान और करुणा की भावना को प्रोत्साहित करता है।
6.ज्ञान और दर्शन की गहराई:
- सनातन धर्म में वेदों, उपनिषदों, पुराणों, रामायण, महाभारत और भगवद्गीता जैसे विशाल और समृद्ध ज्ञान भंडार हैं।
- इन ग्रंथों में जीवन, ब्रह्मांड और आत्मा के स्वरूप से संबंधित गहन दार्शनिक विचार प्रस्तुत किए गए हैं, जो मानव बुद्धि को चुनौती देते हैं और आध्यात्मिक जिज्ञासा को शांत करते हैं।
7.परिवर्तनशीलता और अनुकूलनशीलता:
- अपनी प्राचीन जड़ों के बावजूद, सनातन धर्म समय और परिस्थितियों के अनुसार परिवर्तन और अनुकूलन करने की क्षमता रखता है।
- विभिन्न युगों में नए संत, गुरु और विचारक हुए हैं जिन्होंने धर्म के मूल सिद्धांतों को नए संदर्भों में समझाया है और समाज की बदलती आवश्यकताओं के अनुसार मार्गदर्शन किया है।
यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि “सर्वश्रेष्ठ” एक व्यक्तिपरक शब्द है और विभिन्न लोगों के अपने-अपने मानदंड हो सकते हैं। हालांकि, ऊपर दिए गए कारण सनातन धर्म को एक अद्वितीय और महत्वपूर्ण आध्यात्मिक परंपरा बनाते हैं, जिसके अनुयायी इसे जीवन का एक पूर्ण और सार्थक मार्ग मानते हैं।