
भारतीय संत परंपरा में संत ज्ञानेश्वर जी (संत ज्ञानदेव) का नाम अद्वितीय श्रद्धा से लिया जाता है। वे केवल संत ही नहीं, बल्कि अद्वैत चेतना के मूर्त रूप और मराठी भक्ति आंदोलन के अमर दीप थे। उनकी संजीवन समाधि की कथा भक्तों के हृदय को भावविभोर कर देती है।
🌸 अल्पायु में दिव्य प्रतिभा
संत ज्ञानेश्वर जी का जीवन कठिनाइयों में शुरू हुआ, परंतु उनकी आत्मा जन्म से ही ज्ञान और भक्ति में डूबी रही।
उन्होंने अपने भाई-बहनों निवृत्तिनाथ, सोपानदेव और मुक्ताबाई के साथ मिलकर संत परंपरा को जगमगाया।
उनकी रचना “ज्ञानेश्वरी”, गीता पर मराठी भाष्य, आज भी लोककल्याण का दीपक है।
✨ संजीवन समाधि का क्षण
जब ज्ञानेश्वर जी को आभास हुआ कि उनका सांसारिक कार्य पूर्ण हो चुका है, तब उन्होंने अपने भक्तों और भाई-बहनों को आलंदी में बुलाया।
उन्होंने कहा:
“मेरा शरीर अब पृथ्वी पर रहने योग्य नहीं रहा। यह आत्मा अब परमात्मा की गोद में विलीन होने को तैयार है।”
भक्तों ने आँसुओं में भीगकर उन्हें रोकना चाहा, पर वे मुस्कुराते हुए बोले —
“यह अंत नहीं है, यह अनंत से मिलन का उत्सव है।”
फिर उन्होंने अपनी समाधि गढ़ी और जीवित अवस्था में उसमें प्रवेश कर गए। यही कहलाती है संजीवन समाधि।
🌿 आलंदी की समाधि स्थल
महाराष्ट्र के पुणे जिले में स्थित आलंदी नगर आज संत ज्ञानेश्वर जी की समाधि का पवित्र धाम है।
समाधि के चारों ओर भक्ति का अद्भुत वातावरण है।
हर वर्ष लाखों वारीकरी (पंढरपुर वारी यात्री) यहाँ आकर संत को प्रणाम करते हैं।
समाधि पर अखंड नामस्मरण और हरिकीर्तन चलता है।
वातावरण इतना पवित्र होता है कि भक्तों को लगता है मानो आज भी संत ज्ञानेश्वर जी समाधि के भीतर ध्यानमग्न हैं।
🌼 भक्तों के अनुभव
कई भक्त बताते हैं कि समाधि पर बैठते ही उनके मन में अद्भुत शांति और आंतरिक आनंद का संचार होता है।
ऐसा लगता है जैसे संत की आत्मा अब भी वहाँ जीवंत है और हर आगंतुक को करुणा और आशीर्वाद देती है।
समाधि स्थल पर अनुभव होने वाली शांति किसी भी साधक को आत्मा के गहनतम स्तर से जोड़ देती है।
✨ प्रेरणा
संत ज्ञानेश्वर जी की संजीवन समाधि हमें यह गहरी शिक्षा देती है कि —
आत्मा कभी मरती नहीं, केवल परमात्मा में विलीन होती है।
सच्ची साधना मृत्यु को भी उत्सव बना देती है।
जब जीवन भक्ति, प्रेम और सेवा से भरा हो, तो विदाई भी प्रेरणा बन जाती है।
🌸 निष्कर्ष
संत ज्ञानेश्वर जी की संजीवन समाधि केवल एक ऐतिहासिक घटना नहीं, बल्कि भक्ति का जीवंत प्रतीक है।
आज भी आलंदी में उनकी समाधि पर जाकर भक्त यही अनुभव करते हैं कि —
“संत गए नहीं हैं, वे हमारे भीतर और हमारे चारों ओर, हर नामस्मरण की ध्वनि में जीवित हैं।” 🌺🙏