
संत परंपरा में कुछ नाम ऐसे हैं जो समाज की रूढ़ियों को तोड़ते हुए ईश्वर-प्रेम का जीवंत उदाहरण बन गए। ऐसी ही एक महान संत थीं कान्होपात्रा, जिनका जीवन आज भी भक्ति, साहस और आत्मिक जागरण की प्रेरणा देता है।
जन्म और पृष्ठभूमि
कान्होपात्रा का जन्म महाराष्ट्र के मंगलगड किले में हुआ था। उनके पिता शाहूपंत तलवारदार थे और माता साध्वी स्वभाव की महिला थीं। बचपन से ही कान्होपात्रा का मन सांसारिक खेल-कूद में नहीं लगता था। वे बचपन से ही भक्ति गीत गातीं और भगवान विट्ठल के नाम में तल्लीन रहतीं।
कठिन परिस्थितियाँ और समाज की रुकावटें
कान्होपात्रा का जीवन आसान नहीं था। पिता के निधन के बाद उन्हें दरबार में नृत्यांगना बनने के लिए विवश किया गया। समाज ने उन्हें केवल एक नाचने-गाने वाली के रूप में देखना चाहा। परंतु भीतर से वे संत-स्वभाव वाली आत्मा थीं, जिन्हें सांसारिक बंधन स्वीकार्य नहीं थे।
उनके गीत केवल मनोरंजन नहीं थे, बल्कि विट्ठल के प्रति अनन्य प्रेम और तड़प से भरे होते थे। यही कारण था कि सुनने वाले भी उनके गीतों में भक्ति का रस अनुभव करते थे।
विट्ठल भक्ति और पंढरपुर का आह्वान
कान्होपात्रा ने अपने मन में निश्चय किया कि वे नर्तकी का जीवन नहीं जी सकतीं। उन्होंने सब बंधन तोड़कर पंढरपुर की ओर प्रस्थान किया। रास्ते भर वे भजन गाती हुई चलतीं और लोगों के दिलों को भक्ति से भर देतीं।
पंढरपुर पहुंचकर उन्होंने विट्ठल के चरणों में स्वयं को अर्पित कर दिया। वहां उन्होंने भक्ति-साधना में अपना संपूर्ण जीवन लगा दिया। उनके भजन आज भी पंढरपुर के भक्तों के बीच गाए जाते हैं।
समाज के लिए संदेश
कान्होपात्रा का जीवन इस बात का प्रमाण है कि ईश्वर-प्रेम किसी बंधन में नहीं बंध सकता। उन्होंने समाज की कठोर परंपराओं और रूढ़ियों को तोड़कर दिखाया कि सच्ची भक्ति वही है जिसमें आत्मा पूर्ण समर्पण कर देती है।
गहन सीख
- भक्ति का मार्ग साहस माँगता है – रूढ़ियाँ और विरोधी परिस्थितियाँ हर भक्त के सामने आती हैं।
- सच्चा प्रेम शुद्ध और निर्भीक होता है – कान्होपात्रा ने सांसारिक अपमान सहा, लेकिन भगवान से दूरी नहीं बनने दी।
- नामस्मरण ही सच्चा आभूषण है – उनका जीवन बताता है कि साधना और भक्ति ही आत्मा को सुंदर बनाती है।
✨ निष्कर्ष
संत कान्होपात्रा केवल एक भक्त न थीं, बल्कि साहस, स्वतंत्रता और प्रेम की जीती-जागती मूर्ति थीं। उन्होंने अपने जीवन से यह दिखाया कि अगर हृदय में भगवान का नाम है तो कोई भी बंधन भक्त को रोक नहीं सकता। आज भी उनके भजन और जीवन कथा साधकों को प्रेरित करती है कि वे निडर होकर “विट्ठल-विट्ठल” का नाम जपें और आत्मा को परमात्मा से जोड़ें।