
भारत की संत परंपरा में संत सहजोजी बाई का नाम अत्यंत श्रद्धा और सम्मान से लिया जाता है। वे 18वीं शताब्दी की महान संत कवयित्री थीं, जिन्होंने संत चरणों में सम्पूर्ण समर्पण और भक्ति का अद्भुत उदाहरण प्रस्तुत किया। उनका जीवन, उनकी वाणी और उनका सम्पूर्ण व्यक्तित्व गुरु महिमा का जीवंत प्रतिरूप बन गया। 🌟
संत सहजोजी बाई का जीवन परिचय:
संत सहजोजी बाई का जन्म राजस्थान में हुआ था। वे संत चरणदास जी की परम शिष्या थीं। उन्होंने सांसारिक जीवन से वैराग्य लेकर, पूर्णतः गुरु चरणों में शरण ग्रहण की। 🛕
सहज स्वभाव, उच्च आत्मबोध और गंभीर आध्यात्मिकता के कारण वे ‘सहजो बाई’ कहलाईं। उनका जीवन स्त्री संतों की उस परंपरा को सशक्त बनाता है जिसमें भक्ति, त्याग और ज्ञान का अद्वितीय संगम मिलता है। 💫
गुरु महिमा: सहजोजी की वाणी में
संत सहजोजी बाई की रचनाओं में गुरु की महिमा का विस्तारपूर्वक वर्णन मिलता है। वे गुरु को केवल उपदेशक नहीं, बल्कि ब्रह्मस्वरूप मानती थीं। 🙇♀️🙏
उनके अनुसार—
“गुरु की महिमा कौन बखाने, शब्द-सहज जो कह न जाने।
गुरु बिन ज्ञान न उपजै, गुरु बिन मिटे न मोह।
गुरु बिन सुरति न सहज हो, गुरु बिन कौन करो लो!” 📝
इस वाणी में सहजोजी स्पष्ट करती हैं कि गुरु के बिना आत्मज्ञान, मोह-विनाश और सहज स्थिति संभव नहीं। गुरु ही वह दीप हैं जो आत्मा के अंधकार को हरते हैं और शिष्य को आत्मबोध की ओर ले जाते हैं। 🕯️✨
गुरु-शिष्य संबंध की पराकाष्ठा:
संत सहजोजी बाई ने अपने जीवन में गुरु को सर्वोपरि मानते हुए आत्म-त्याग का ऐसा उदाहरण प्रस्तुत किया जो विरले ही मिलता है। वे कहती हैं—
“गुरु की आग्या माथे धरूँ, जीवन साँचो पंथ।
गुरु बिना जग झूठ है, गुरु ही परमसंत।” 🛤️
यह भाव बताता है कि उनके लिए गुरु केवल जीवनदाता नहीं, बल्कि आत्मा के मोक्ष का मार्गदर्शक भी हैं।
उन्होंने गुरु की आज्ञा को ही धर्म, भक्ति और ज्ञान का मूल माना। 📿
संत सहजोजी की वाणी की विशेषताएँ:
- सरलता और सहजता: उनकी वाणी में कठिन दार्शनिक शब्दों की बजाय सरल और सीधे भाव मिलते हैं। 📖
- गुरुभक्ति का उत्कर्ष: उनके अधिकांश पदों में गुरु की कृपा को ही मोक्ष का कारण बताया गया है। 🌈
- नारी दृष्टिकोण: एक महिला संत होते हुए भी उन्होंने आत्मबोध और आध्यात्मिकता के सर्वोच्च शिखर को छूने का साहसिक मार्ग अपनाया। 🕊️
निष्कर्ष:
संत सहजोजी बाई का जीवन और वाणी भारतीय संत परंपरा का बहुमूल्य रत्न है। उन्होंने दिखाया कि गुरु भक्ति और आत्मसमर्पण के द्वारा कोई भी साधक आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है।
आज जब जीवन में दिशाहीनता और आत्मविस्मृति का दौर है, तब सहजोजी की वाणी हमें याद दिलाती है कि—
“गुरु बिना गति नहीं कोई, गुरु ही पार लगाए।
सहजो कहे सुनो रे भाई, गुरु से बढ़कर नाहीं।।” 🛶🕉️
जय गुरु देव! 🙏✨