
⭐आज का सत्संग ⭐
“सतगुरु की कृपा से अंतर्दृष्टि का ज्ञान””
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“संसार दिखे नेत्र से, सत्य दिखे अंतर में,
सतगुरु दे जब कृपा, जागे नेत्र अमर में।”
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💫गुरुमुखों श्री परमहंस अमर ज्योति ग्रन्थ मेंश्री चतुर्थ पादशाही गुरु महाराज जी ने अपने पावन वचनों में फरमाया है——-
💫हम सब अपने इन दो नेत्रों से इस जगत को देखते हैं। इन नेत्रों से हमें केवल भौतिक दृश्य दिखाई देता है – रूप, रंग, आभा और चारों ओर की चहल-पहल। किन्तु यह सब केवल बाहरी संसार है, जो परिवर्तनशील है और एक दिन समाप्त हो जाना है।
💫परंतु हमारे भीतर एक और नेत्र है – अंतर्दृष्टि। यह नेत्र न तो शरीर का अंग है और न ही इसे साधारण नेत्रों की भांति देखा जा सकता है। यह आत्मा का नेत्र है, जो हमें सत्य का, परमात्मा का और वास्तविक आत्मिक संसार का अनुभव कराता है।🙏🏻🌹🙏🏻🌹
💫यह अंतर्दृष्टि स्वयं नहीं जागती। जैसे अंधकार में दीपक की आवश्यकता होती है, वैसे ही अंतर्दृष्टि को प्रकट करने के लिए सतगुरु का दिव्य प्रकाश आवश्यक है। सतगुरु ही वह शक्ति हैं जो अपने शिष्य की आंखों पर पड़े अज्ञान के पट को हटाकर उसे सत्य का साक्षात्कार कराते हैं।🙏🏻🌹🙏🏻🌹
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File:Dhyan Ke Saadhan{Sthirta}
🌼 संदेश यह है कि –
दो नेत्र हमें केवल अस्थायी संसार दिखाते हैं
परंतु सतगुरु की कृपा से मिला तीसरा नेत्र हमें अमर सत्य का दर्शन कराता है।🙇♀️🙏🏻🙇♀️🙏🏻🌹🌹🌹
💫भक्ति, नाम-स्मरण और सतगुरु की महिमा का चिंतन ही वह मार्ग है जिससे यह अंतर्दृष्टि जागृत होती है।🙏🏻🌹🙏🏻🌹
💫जब यह नेत्र खुलता है तो साधक अपने भीतर छिपे परम प्रकाश को देखता है और जीवन का असली उद्देश्य समझता है।🙏🏻🌹🙏🏻🌹
💫संसार में देखी हर वस्तु नश्वर है, परंतु सतगुरु की कृपा से जागी अंतर्दृष्टि हमें उस शाश्वत परमात्मा से जोड़ देती है, जिससे आत्मा को अमर शांति और आनंद मिलता है।🙏🏻🌹🙏🏻🌹
✨ इसलिए हमें चाहिए कि हम निरंतर सतगुरु की शरण में रहें, उनके नाम का जप करें, और उनके उपदेशों को अपने जीवन का आधार बनाएं। यही मार्ग हमें अज्ञान से ज्ञान, और मृत्यु से अमरता की ओर ले जाता है!🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹🙏🏻🌹
बोलो जयकारा बोल मेरे श्री गुरु महाराज की जय 🙇♀️🙏🏻🙇♀️🙇♀️🙏🏻