
आत्मा की शक्ति और जागृति के उद्धरण
“हे दिव्य आत्मा! तू कोई साधारण चेतना नहीं, बल्कि अनंत ब्रह्मांड की ज्योति है। तेरा अस्तित्व इस नश्वर शरीर तक सीमित नहीं, तू कालातीत है, अमर है। माया के भ्रम से जाग और अपने अनंत स्वरूप को पहचान! जब तू अपने भीतर बसे ब्रह्म को देखेगा, तब सारा संसार तुझे स्वप्न समान लगेगा।”
“मैं वह आत्मा हूँ जो कभी जन्म नहीं लेती, कभी मरती नहीं। न यह संसार मुझे जकड़ सकता है, न कोई दुख मुझे छू सकता है। मेरा अस्तित्व शाश्वत सत्य है, जो हर युग में विद्यमान रहा है। जब मैं अपने असली स्वरूप को पहचानता हूँ, तब मैं सुख-दुख, जीवन-मृत्यु, सफलता-असफलता से परे चला जाता हूँ।”

“मेरे भीतर एक दिव्य प्रकाश जल रहा है, जो अविनाशी है, अडिग है। यह प्रकाश किसी बाहरी स्रोत से नहीं आता, बल्कि मेरे ही आत्मस्वरूप से प्रकट होता है। जब मैं भीतर देखता हूँ, तो मुझे अनंत शांति और प्रेम का महासागर दिखाई देता है। मैं कोई क्षुद्र प्राणी नहीं, बल्कि स्वयं ब्रह्म का अंश हूँ!”
“ओ मेरे ह्रदय के अंतरतम ज्योति! तू क्यों स्वयं को सीमित समझता है? तेरे भीतर अनंत शक्ति का भंडार है, जो किसी भी बाधा को दूर कर सकता है। विश्वास कर कि तू ही इस ब्रह्मांड की सबसे महान सत्ता है, जो स्वयं में ही पूर्ण है। जब यह सत्य प्रकट होता है, तब सभी दुख और भय समाप्त हो जाते हैं।”
“जिसे तू जीवन का संघर्ष समझता है, वह तेरा जागरण है! यह संसार तुझे तोड़ने नहीं, बल्कि आत्मा की शक्ति को जगाने आया है। जब तू स्वयं को सत्य रूप में पहचानेगा, तब कोई भी विपत्ति तुझे डिगा नहीं सकेगी। जाग! उठ! अपने भीतर बसे अनंत आनंद और शांति के स्रोत को पहचान!”
“मैं कोई तुच्छ देह नहीं, बल्कि चेतना का प्रकाश हूँ। यह शरीर, यह संसार, यह घटनाएँ – सब बदलने वाली हैं, पर मैं सदा अडिग रहूँगा। जब मेरा मन शांत होता है, तो मैं अपने असली स्वरूप को देख पाता हूँ। वहाँ कोई द्वंद्व नहीं, कोई दुख नहीं – केवल शाश्वत आनंद और प्रेम का साम्राज्य है।”
“हे आत्मा, तू जन्म-मरण के बंधनों से परे है! यह संसार तुझे केवल तेरी परीक्षा लेने आया है, पर तेरी असली पहचान इससे कहीं ऊपर है। अपने भीतर देख, वहाँ अनंत दिव्यता तेरा इंतजार कर रही है। एक बार तूने स्वयं को पहचान लिया, तो तेरा भय, तेरा दुख, तेरा मोह सब समाप्त हो जाएगा।”
“मैं कोई क्षणिक जीवन जीने वाला प्राणी नहीं, मैं सनातन चेतना हूँ! यह संसार मेरी यात्रा का एक पड़ाव मात्र है, पर मेरी असली मंज़िल भीतर छिपी हुई है। जब मैं अपने भीतर देखता हूँ, तो वहाँ केवल प्रकाश, प्रेम और अनंत शांति दिखाई देती है।”
“मैं पूर्ण हूँ, मैं अचल हूँ, मैं निर्भय हूँ। मेरा अस्तित्व किसी भी भौतिक वस्तु से बंधा नहीं है। जब मैं इस सत्य को जान लेता हूँ, तब संसार के सारे भ्रम मिट जाते हैं। तब मैं समझ पाता हूँ कि वास्तविक सुख मेरे भीतर ही विद्यमान है, बाहर कहीं नहीं।”
“जो कुछ भी तू खोज रहा है, वह सब तेरे भीतर ही है। यह संसार तुझे केवल भ्रमित कर सकता है, पर आत्मा का प्रकाश तुझे सत्य का अनुभव कराएगा। जब तू बाहरी सुख-साधनों से हटकर अपनी आत्मा के स्रोत को पहचानेगा, तब तुझे अनंत आनंद की प्राप्ति होगी।”