
जीवन में हर किसी के सामने दुःख और संकट के अवसर आते हैं। यह समय हमारे लिए चुनौती भी है और अवसर भी। फर्क इस बात से पड़ता है कि हम उस समय क्या सोचते हैं।
नकारात्मक सोच की जंजीरें
जब हम अपने मन में यह मान लेते हैं कि हम बीमार हैं, असहाय हैं या परिस्थितियों के सामने हारे हुए हैं — तो सच मानिए, हमारी यह नकारात्मक सोच ही हमें जकड़ लेती है।
चाहे हमारे पास करोड़ों रुपये हों, बड़ा पद हो, सम्मान हो, परिवार हो, सब सुविधाएँ हों — यदि भीतर की सोच नकारात्मक है, तो यह सब कुछ हमें चैन नहीं दे पाएगा।
सकारात्मक सोच का कवच
इसके विपरीत, यदि हम अपने विचारों को मजबूत, सकारात्मक और ईश्वर के चरणों में टिकाए रखें, तो वही विचार हमें बचा लेते हैं।
संकट का समय भजन और साधना से जुड़ने का है। भजन वह दीपक है जो अंधेरी रात में राह दिखाता है, और सकारात्मक सोच वह कवच है जो दुख के तूफानों से बचाता है।
मन की लड़ाई, बाहर नहीं भीतर
सच्चाई यह है कि सबसे बड़ी लड़ाई बाहर की नहीं, भीतर की होती है।
हमारे विचार ही हमारे मित्र भी बनते हैं और शत्रु भी।
👉 अगर विचार सकारात्मक हैं, तो दुःख भी साधना का अवसर बन जाता है।
👉 अगर विचार नकारात्मक हैं, तो सुख-सुविधाओं के बीच भी बेचैनी हमें चैन से जीने नहीं देती।
संतों की वाणी
कबीरदास जी कहते हैं:
“मन के हारे हार है, मन के जीते जीत।
कहा कबीर यह बात है, साधो ध्यान समीत।।”
भावार्थ:
मन यदि हार मान ले, तो इंसान सब कुछ हार जाता है। और यदि मन जीत ले, तो बाहरी परिस्थितियाँ चाहे जैसी हों, वह विजयी रहता है।
निष्कर्ष
दुःख का असली इलाज दवाइयाँ, दौलत या सुविधाएँ नहीं हैं।
असली इलाज है — अपने विचारों को साधना, नकारात्मकता को छोड़कर भजन और सकारात्मकता को अपनाना।
याद रखिए, परिस्थितियाँ हमेशा आपके वश में नहीं होतीं, पर आपके विचार हमेशा आपके वश में होते हैं।
🌹✨ जब मन ईश्वर के नाम में डूबता है, तो दुःख केवल साधना का साधन बन जाता है। ✨🌹